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October 7, 2024

नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की होती है पूजा, जानिए विधि और महत्व

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शिमला। देवभूमि हिमाचल के मंदिरों और शक्तिपीठों में लोगों की भीड़ उमड़ी हुई है। नवरात्रों में हर जगह अलग ही चहल-पहल नजर आ रही है। आज नवरात्रि का छठा दिन है। नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। देवी कात्यायनी शक्ति और साहस की प्रतीक मानी जाती हैं।

मां कात्यायनी का स्वरूप

कथाओं के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप माँ कात्यायनी का जन्म हुआ। उन्होंने महिषासुर का वध कर पृथ्वी को अत्याचार से मुक्त किया था। यह भी पढ़ें : हिमाचल के रियांश का धमाका, छोटी सी उम्र में जीता बड़ा खिताब

मां कात्यायनी पूजा विधि

मां कात्यायनी की पूजा के लिए भक्त प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और मां की प्रतिमा या चित्र के सामने घी का दीपक जलाते हैं। पीले फूल, खासकर गेंदे के फूल और मिठाई मां को अर्पित की जाती है। मां कात्यायनी को गुड़ और शहद का भोग विशेष रूप से प्रिय है।

मां कात्यायनी का महत्व

मां कात्यायनी की पूजा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। अविवाहित लड़कियां मां कात्यायनी की पूजा विशेष रूप से करती हैं। मान्यता है कि इससे उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। इस दिन साधक अपने मन और आत्मा को पूर्ण रूप से मां के चरणों में समर्पित करते हैं और साहस, बल और विजय की प्राप्ति करते हैं। यह भी पढ़ें : हिमाचल : दुनिया छोड़ गई विवाहिता, मायका पक्ष के आरोप पर पति हुआ अरेस्ट

मां कात्यायनी की कथा

पुराणों के अनुसार, एक समय महिषासुर नाम का एक दानव पृथ्वी पर अत्याचार कर रहा था। वह एक अजेय राक्षस था जिसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। महिषासुर को वरदान था कि उसे कोई देवता या पुरुष नहीं मार सकता। उसकी शक्तियों के आगे देवता भी असहाय हो गए और तब उन्होंने भगवान विष्णु, भगवान शिव और ब्रह्मा से सहायता मांगी। यह भी पढ़ें : हिमाचल : घर से दवाई लेने निकली थी महिला, 15 दिन बाद पड़ा मिला कंकाल देवताओं की प्रार्थना पर सभी देवताओं ने अपनी शक्ति और तेज का एक हिस्सा एकत्रित किया, जिससे मां कात्यायनी का जन्म हुआ। माँ कात्यायनी के रूप को महर्षि कात्यायन ने अपनी कठोर तपस्या से उत्पन्न किया था, इसीलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। महर्षि ने माँ कात्यायनी की विशेष रूप से पूजा की थी, और माँ ने उन्हें दर्शन देकर आशीर्वाद प्रदान किया था। जब मां कात्यायनी का जन्म हुआ, तो उन्होंने शक्तिशाली महिषासुर के आतंक को समाप्त करने का संकल्प लिया। महिषासुर ने देवताओं और मनुष्यों को बहुत परेशान कर रखा था, इसलिए मां कात्यायनी ने महिषासुर से युद्ध किया। कई दिनों तक चले इस युद्ध में मां कात्यायनी ने अपनी अद्भुत शक्ति और साहस का परिचय दिया। अंत में उन्होंने महिषासुर का वध किया और पृथ्वी, स्वर्ग और समस्त लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्त किया।

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