सोलन। हिमाचल प्रदेश को देवताओं की भूमि के रूप में जाना जाता है। सूबे में कई प्राचीन और पवित्र मंदिर स्थित हैं। यह राज्य अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है और यहां के मंदिरों का ना केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व भी है। हिमाचल की प्राकृतिक सुंदरता के बीच स्थित ये मंदिर लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
भगवान शिव का प्राचीन मंदिर
आज हम आपको हिमाचल के ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे- जहां शिवलिंग पर फूल, फल, दूध-जल, धतूरा और अन्य मिष्ठान तो चढ़ाए जाते हैं। साथ ही भगवान शिव को भांग से भरी सिगरेट सुलगाकर भी रखी जाती है। भगवान शिव का ये प्राचीन मंदिर सोलन जिले में स्थित है। इस मंदिर को लुटरू महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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विशाल गुफा के अंदर बना है मंदिर
जिला सोलन के अर्की में स्थित लुटरू महादेव मंदिर शिव की लटाओं के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1621 में बाघल रियासत के राजा ने करवाया था। यह मंदिर एक विशाल गुफा के भीतर बना हुआ है। गुफा की लंबाई लगभग 61 फीट और चौड़ाई 31 फीट है।
इस गुफा के भीतर एक स्वयंभू शिवलिंग स्थित है। इस शिवलिंग पर शिव की लटाएं स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। गुफा के दाहिनी ओर, ठीक ऊपर, लगभग 5 मीटर के गोलाकार का एक छेद बना हुआ है। इस छेद से सूर्य की किरणें गुफा के भीतर आती हैं और शिवलिंग पर भी पड़ती हैं।
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शिव को चढ़ाई जाती भागं से भरी सिगरेट
खास बात यह है कि इस मंदिर में शिवलिंग पर फूल, फल, दूध-जल, धतूरा और अन्य मिष्ठान चढ़ाए जाते हैं। इसके अलावा, शिव को भांग से भरी सिगरेट सुलगाकर भी अर्पित की जाती है। जली हुई सिगरेट स्वयं ही खत्म हो जाती है और इससे शिव प्रसन्न हो जाते हैं।
पिछले कई वर्षों से इस मंदिर में 1008 बाबा कृपाल भारती रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहां हर रोज चार पहरों की पूजा-अर्चना की जाती है। सुबह करीब 4 बजे से पूजा का दौर शुरू हो जाता है।
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गूंजती है ओम की ध्वनि
बाबा कृपाल भारती के अनुसार, स्वयंभू शिवलिंग में बने एक छेद में आराध्य के लिए सिगरेट रखी जाती है। शिव को भांग का धुआं अर्पित करना यहां एक पुरानी परंपरा है। उनका मानना है कि यदि शिव को भांग या उससे भरी सिगरेट अर्पित न की जाए, तो वे नाराज हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप इलाके में अनहोनी घटनाएं होने लगती हैं। संक्रांति के दिन तड़के यहां अपने आप "ओम" की ध्वनि गूंजती है।
लुटरू महादेव मंदिर का इतिहास
लुटरू महादेव मंदिर से जुड़ी प्रमुख कथा यह है कि इसका निर्माण महाभारत के समय का माना जाता है। कहा जाता है कि जब पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान इस क्षेत्र में आए थे, तब उन्होंने इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी। पांडवों के समय से यह मंदिर एक धार्मिक स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है और भगवान शिव की विशेष कृपा यहां मानी जाती है।
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मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव की उपासना करने से इच्छाएं पूरी होती हैं। विशेषकर वे लोग जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, यहां भगवान शिव की आराधना करने आते हैं। इसके अलावा जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से भगवान शिव से कुछ मांगते हैं-उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
नाम के पीछे की दिलचस्प कहानी
कथाओं के अनुसार, लुटरू महादेव के नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। माना जाता है कि ‘लुटरू’ नाम भगवान शिव को ही दर्शाता है। मान्यता के अनुसार, भगवान शिव इस रूप में अपने भक्तों के दुख-दर्द को ‘लूट’ कर ले जाते हैं, यानी भक्तों के कष्टों को हर लेते हैं। इसी से इस मंदिर का नाम ‘लुटरू महादेव’ पड़ा।
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