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September 24, 2024

हिमाचल में यहां भगवान शिव ने दिए थे साक्षात दर्शन, आज भी मौजूद हैं पद चिन्ह

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चंबा। देवभूमि कहलाए जाने वाले हिमाचल प्रदेश के घर-घर में देवालय है। हिमाचल के कई मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं- जहां दर्शन करने के लिए हर साल सैकड़ों पर्यटक आते हैं। सूबे के कई शक्तिपीठ और शिवधाम धार्मिक पर्यटन के विश्व मानचित्र पर भी अपनी खास पहचान रखते हैं। राज्य में कई ऐसे मंदिर है-जिनके साथ भगवान शिव की आस्था के जुड़ी कई अद्भुत निशानियां और कहानियां हैं। हालांकिस, हिमातल के बहुत सारे धार्मिक स्थल अभी तक नजरअंदाज ही हैं। जिस कारण ऐसे स्थानों पर पर्यटकों की आमद कम है। यह भी पढ़ें : हिमाचल में फिर भारी बारिश का येलो अलर्ट जारी, जानिए कब विदा होगा मानसून

क्या आपने किए हैं कुंजर महादेव के दर्शन?

आज हम अपने इस लेख में आपको भगवान शिव के ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताएंगे। जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। हम बात कर रहे हैं कुंजर महादेव मंदिर की- जो कि चंबा जिले के भट्टियात में कुंजरोटी स्थान पर स्थित है। आपको बता दें कि शिव के पदचिन्ह के रूप में इस मंदिर में पवित्र कुंआ आस्तित्व में आया है। कुंजर महादेव में खंडित शिला का पूजन होता है।

भगवान शिव ने की थी यहां तपस्या

मान्यता है कि कभी इस मंदिर में भगवान शिव ने तपस्या की थी। यहां खंडित शिला व भगवान शिव के पदचिन्हों के निशान रह गए हैं। उन पदचिन्हों के स्थान पर पानी एकत्रित हो गया जो आज भी कुंजर पर्वतखंड पर एक कुंए के रूप उपस्थित है। यह भी पढ़ें : हिमाचल : परिवार ने खोया जवान बेटा, एक दिन पहले ही गया था सबसे मिलकर

टीले पर कुआं, शिव का चमत्कार

लोगों का कहना है कि यह एक साक्षात चमत्कार है कि इतनी ऊंचाई पर टीले पर कैसे एक कुआं हो सकता है। शिव उपासक इसे शिव के एक चमत्कार के रूप में देखते हैं। इस स्थान के प्रति स्थानीय लोगों की गहरी आस्था है।

मंदिर में होता है पवित्र स्नान

सावन या भादों महीने में राधा अष्टमी के दिन इस मंदिर में पवित्र स्नान होता है। राधा अष्टमी के दिन कुएं का पानी अचानक ऊपर छलक आता है। श्रदालु यहां पर पवित्र स्नान कर खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं। मणिमहेश यात्रा और शिवरात्रि उत्सव के दौरान भी इस मंदिर में शिव भक्तों का तांता लगा रहता है। यह भी पढ़ें  हिमाचल के पूर्व DGP समेत 10 पुलिस अधिकारियों पर FIR, महिला ने लगाए हैं आरोप

क्या है मंदिर से जुड़ी कथा?

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने कैलाश जाते समय कुछ समय के लिए यहां रुककर तपस्या की थी। कहते हैं कि भगवान शिव ने एक शिला का रूप धारण किया और साधना में लीन हो गए। एक गडरिया वहां पर भड़ों को चराने के लिए आया और उस शिला पर बैठकर दराती को धार लगाने लगा। जब वह वहां से उठा और दराती के निरीक्षण के लिए एक पेड़ को काटना चाहा तो उसने दाराटी के एक ही वार से एक बड़े तने वाले पेड़ को काट दिया। इसे देखकर गडरिया हैरान रह गया। यह भी पढ़ें : राहुल-सोनिया के बाद प्रियंका गांधी ने हिमाचल को कहा बाय, 9 दिन शिमला में ठहरी थीं

गडरिये को मिला चमत्कारी पत्थर

गडरिये ने तय किया कि वह शाम को घर वापसी पर इस चमत्कारी पत्थर को उठाकर ले जाएगा। दिनभर भेड़ें चराने के बाद शाम को जब उसने पत्थर को उठाकर ले जाने की कोशिश की तो वह उस पत्थर को हिला तक ना सका। गडरिया इस कीमती पत्थर के मोहपास में बंध गया। पत्थर का एक हिस्सा तोड़कर अपने घर ले जाने का विचार आते ही उसने पूरी ताकत से उस पत्थर पर जोर-जोर से प्रहार करना शुरू कर दिया। उसके प्रहारों से पत्थर में एक दरार सी आ गई।

भगवान शिव ने दिए दर्शन

उसी वक्त वहां भगवान शिव प्रकट हुए और नाराजगी प्रकट की और कहा कि गडरिया को कहा कि उसने उनकी तपस्या में खलल डाला है। गडरिया भगवान शिव के चरणों में गिर पड़ा और माफी मांगने लगा। इस पर भगवान शिव ने उसे माफ कर दिया और कहा कि किसी को भी मत बताना कि मैं यहां तपस्या कर रहा हूं। यह भी पढ़ें : हिमाचल : महिला ने खा लिया था ज*हर, आठ दिन बाद छोड़ गई दुनिया

भेद खोलने पर पत्थर बना गडरिया

मगर गडरिया ने वहां से जाते ही लोगों को आपबीती सुनाई। जैसे ही गडरिया ने शिव की तपस्या के बारे में बताया वैसे ही गडरिया एक चट्टान का रूप धारण कर गया। वहीं, भगवान शिव भी वहां से कैलाश के लिए प्रस्थान कर गए और उस स्थान पर वह खंडित शिला और भगवान शिव के पदचिन्हों के निशान रह गए। उन पदचिन्हों के स्थान पर पानी एकत्रित हो गया जो आज भी ‘कुंजर’ पर्वतखंड पर एक कुंए के रूप उपस्थित है।

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