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August 6, 2024

यहां पाताल में धंस रहा अद्भुत शिवलिंग, पांडवों से जुड़ा है इस मंदिर का इतिहास

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कांगड़ा। हिमाचल प्रदेश को देवी-देवताओं की भूमि कहा जाता है। देवभूमि में कई प्राचीन मंदिर मौजूद हैं- जिनका इतिहास काफी रोचक है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक मंदिर हिमाचल के कांगड़ा जिले में गरली-प्रागपुर के पास ब्यास नदी के तट पर स्थित है।

पाताल में धंस रहा शिवलिंग

हम बात कर रहे हैं विख्यात प्राचीन कालीनाथ मंदिर की। मंदिर में स्थापित मूर्ति में शिव और शक्ति दोनों एक साथ विराजमान हैं। भू-शिवलिंग के बारे में एक जनश्रुति के अनुसार, मंदिर में मौजूद शिवलिंग हर साल एक जौ के दाने के बराबर पाताल में धंसता चला जा रहा है। यह भी पढ़ें: हरियाली तीज व्रत कल: एक क्लिक में जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

कलयुग का हो जाएगा अंत

उज्जैन के महाकाल मंदिर के बाद हिमाचल का कालेश्वर मंदिर या श्री कालीनाथ मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसके गर्भ गृह में ज्योतिर्लिंग स्थापित है। पौराणिक मान्यता है कि जब यह शिवलिंग धरती में समा जाएगा तो कलयुग का अंत हो जाएगा।

तीर्थ स्थल का है विशेष महत्व

आपको बता दें कि बैसाख मास की संक्रांति के पावन अवसर पर इस तीर्थ स्थल पर पूजा-अर्चना और स्नान का विशेष महत्व है। लोगों का विश्वास है कि हरिद्वार और अन्य तीर्थ स्थलों की तरह इस पवित्र स्थल पर स्नान करने से पुण्य मिलता है। इस पवित्र स्थल पर बैसाखी स्नान को गंगा स्नान के तुल्य माना गया है। इस क्षेत्र के लोग जो हरिद्वार जाने में असमर्थ होते हैं- वह यहां अस्थियां भी प्रवाहित करते हैं। यह भी पढ़ें: 40 हजार की दवा फ्री में देगी सुक्खू सरकार: 42 दवाओं का नहीं लगेगा पैसा

पांडवों से जुड़ा है इतिहास

इस मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है। कथाओं के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडव इस स्थील पर आए थे। इसका प्रमाण ब्यास नदी तट पर उनके द्वारा बनाई गई पौड़ियों से मिलता है।

जल लेकर आए थे यहां

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पांडव यहां आए थे तो भारत के पांच प्रसिद्ध तीर्थों हरिद्वार, उज्जैन, नासिक, प्रयाग और रामेश्वरम का जल अपने साथ लाए थे। उन्होंने इस जल को यहां स्थित तालाब में डाल दिया था- जिसे पंचतीर्थी के नाम से जाना जाता है। यही कारण है कि पंचतीर्थी में स्नान को हरिद्वार स्नान के बराबर माना जाता है। कथाओं के अनुसार, श्री कालीनाथ मंदिर एक तपस्वी स्थल है। इस मंदिर में ऋषि-मुनियों की समाधियां हैं। इस मंदिर परिसर में भगवान शिव श्री कालीनाथ समेत नौ मंदिर और 20 मूर्तियां अवस्थित हैं। यह भी पढ़ें: हिमाचल: फैल रही पीलिया की बीमारी, जानिए क्या है लक्षण- कैसे करें बचाव

भगवती महाकाली ने की थी तपस्या

माना जाता है कि इस स्थान पर भगवती महाकाली ने 11000 वर्ष तक तपस्या की थी। जिससे से भगवान शंकर खुश हुए व स्वयंभू होकर महाकाली को दर्शन दिए।

दर्शनों के लिए आते दूरदराज के लोग

मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए पंडित मुकेश ने बताया कि वह इस मंदिर में पिछले 6 साल से पूजा-अर्चना कर रहे हैं। इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और यहां पर दूरदराज के क्षेत्रों से लोग दर्शन के लिए आते हैं।

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