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October 3, 2024

Navratri Special: ऐसे प्रसन्न होंगी मां शैलपुत्री, जानिए संध्या पूजन की विधि और आह्वान मंत्र

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शिमला। आज से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है, जो भारत के प्रमुख हिंदू पर्वों में से एक है। नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की उपासना की जाती है। नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित होता है, जिन्हें पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है। उनकी उपासना से साधक को धैर्य, शक्ति और स्थिरता का वरदान प्राप्त होता है। आज के दिन मां शैलपुत्री की पूजा विशेष रूप से की जाती है, जिसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है।

मां शैलपुत्री का महत्व

मां शैलपुत्री को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वे पिछले जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं, जिन्होंने अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन न कर सती हो गईं। अगले जन्म में वे पर्वतराज हिमालय के घर जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। वे त्रिशूल धारण करती हैं और उनके साथ वृषभ होता है। यह भी पढ़ें : यह भी पढ़ें : 4 शादियां…. 20 बच्चे: समुदाय विशेष पर शांता कुमार का बड़ा बयान देवी शैलपुत्री का पूजन करने से साधक को मानसिक शांति और ऊर्जा प्राप्त होती है। मान्यता है कि उनकी उपासना से साधक के जीवन में आने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं और सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। शैलपुरी संध्या पूजन की विधि और आवाहन मंत्र इस प्रकार हैं:

पूजन की विधि:

संसारिक तैयारी: स्वच्छ स्थान चुनें और वहां एक चौकी पर शैलपुरी देवी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। पूजन सामग्रियों में फूल, दीपक, धूप, चावल, मौली, फल और मिठाई रखें। दीप प्रज्वलन: सबसे पहले दीपक जलाएं और भगवान का ध्यान करें। आवाहन मंत्र: देवी का आवाहन करते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें: ``` ॐ शैलपुत्र्यै नमः ``` अभिषेक और स्नान: देवी को दूध, दही, शहद, गंगाजल आदि से स्नान कराएं। इसके बाद उन्हें वस्त्र अर्पित करें। पुष्प अर्पण: देवी को विभिन्न प्रकार के फूल अर्पित करें और "ॐ नमः शिवाय" का जप करें। नैवेद्य: देवी को फल, मिठाई और अन्य भोग अर्पित करें। आरती: अंत में देवी की आरती करें और "ॐ जय शैलपुत्री माँ" का उच्चारण करें। ध्यान और प्रार्थना: पूजा के दौरान मन में शुद्धता रखें और ध्यान लगाएं। देवी से अपने मन की इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें। यह भी पढ़ें : शिमला से डगशाई जेल तक -10 बार शिमला आए थे महात्मा गांधी, यहां जानें अनसुने किस्से

मां शैलपुत्री की उपासना का फल

मां शैलपुत्री की उपासना से साधक को जीवन में स्थिरता और साहस प्राप्त होता है। यह पूजा व्यक्ति के भीतर संतुलन और मानसिक शांति लाती है। मां शैलपुत्री को धरती की देवी भी कहा जाता है, इसलिए उनकी कृपा से भक्तों को जीवन में स्थिरता और मानसिक शांति प्राप्त होती है। उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।

व्रत का महत्व

नवरात्रि के दौरान व्रत रखने का विशेष महत्व है। भक्त इस दिन अन्न ग्रहण नहीं करते और केवल फलाहार करते हैं। इससे शरीर की शुद्धि होती है और मन की एकाग्रता बढ़ती है। मां शैलपुत्री की उपासना करते समय व्रत रखने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यह भी पढ़ें : हिमाचल- ग्राम सभा में नहीं शामिल हुआ 1500 वाला मुद्दा, 9 एजेंडे तय- जानें डिटेल

शारदीय नवरात्रि का धार्मिक महत्व

शारदीय नवरात्रि केवल एक धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आंतरिक शक्ति को जागृत करने का अवसर भी है। देवी के विभिन्न रूपों की पूजा करते हुए भक्त अपने भीतर की शक्ति को पहचानते हैं और आध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर होते हैं। नवरात्रि के नौ दिन भक्तों के लिए आत्मनिरीक्षण, साधना और देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का समय होता है। यह भी पढ़ें : हिमाचल : वित्तीय अनुशासन पर सख्त एक्शन की तैयारी, अफसरों पर गिर सकती है गाज! इस प्रकार, शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक शांति प्राप्त होती है।

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