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December 2, 2025

दानवीर कर्ण ने रखी थी हिमाचल के इस मंदिर की नींव- 108 पुजारी करते हैं पूजा-अर्चना

108 पुजारी करते हैं इस मंदिर में पूजा

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Aashapuri Temple

कांगड़ा। देवी-देवताओं की भूमि हिमाचल में कई ऐसे मंदिर व शक्तिपीठ हैं, जिनका इतिहास सदियों पुराना रहा है। इन मंदिरों की अपनी-अपनी मान्यताएं है। मंदिरों से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे- जिसकी कहानी महाभारत काल से जुड़ी है।

हर मनोकामना होती है पूरी

इतना ही नहीं इस मंदिर को लेकर ये भी मान्यता है कि यहां पर सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। हम बात कर रहे हैं कांगड़ा के पालमपुर में पंचरुखी के पास चंगर की वादियों में विराजित मां आशापुरी के प्राचीन मंदिर की। जिन्हें मां वैष्णो देवी का स्वरूप माना जाता है।

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महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास

इस मंदिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान इन दुर्गम पहाड़ियों में छिपे हुए थे, तब दानवीर महाबली कर्ण उन्हें खोजते-खोजते इस क्षेत्र तक पहुंचे। पांडव तो उन्हें नहीं मिले, लेकिन खोज के दौरान कर्ण की नजर एक गुफा में विराजमान दिव्य शक्ति पर पड़ी।

किसने की थी मंदिर की स्थापना?

कहते है कि उसी क्षण कर्ण ने अनुभव कर लिया कि यहां कोई साधारण शक्ति नहीं, बल्कि स्वयं देवी का स्वरूप है। यहीं देवी की पिंडी प्रकट हुई और मंदिर की पहली नींव कर्ण के हाथों से रखी गई।

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108 पुजारी करते हैं इस मंदिर में पूजा

कई सदियों बाद 16वीं शताब्दी में कटोच वंश के राजा मान सिंह ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। नगर शैली में निर्मित यह मंदिर अपनी अनोखी वास्तुकला पत्थरों की नक्काशी और रहस्यमयी ऊर्जा के लिए प्रसिद्ध है।

तीन पिंडियों में विराजमान देवी

आशापुरी मंदिर न सिर्फ आस्था का, बल्कि इतिहास और विरासत का भी महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। अपनी अनोखी निर्माण शैली की वजह से यह मंदिर पुरातत्व विभाग की निगरानी में संरक्षित है। मंदिर के गर्भगृह में मां तीन पिंडियों के रूप में विराजमान हैं। यहां 108 पुजारी बारी-बारी से हर दिन पूजा-अर्चना करते हैं।

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दूध बेचने वाले को आया सपना

मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित बाबा भेड़ू नाथ की प्राचीन गुफा भी भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है। मान्यता है कि एक दूध बेचने वाले को सपना आया था जिसमें मां ने गुफा का मार्ग बताया और उसके बाद यह स्थान दुनिया के सामने आया। लोग आज भी यहां अपने पशुधन और परिवार की रक्षा के लिए मन्नत मांगने आते हैं। इसी शक्ति को कांगड़ा के राजपरिवार के गुप्त खजानों की रक्षक माना जाता है। विश्वास है कि मां की कृपा से कांगड़ा का वैभव सदियों तक सुरक्षित रहा।

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