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October 1, 2024

शारदीय नवरात्रि कब? जानिए कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व

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शिमला। हिमाचल प्रदेश के मंदिरों में शारदीय नवरात्रि को लेकर साज-सजावट का काम शुरू हो गया है। इस महीने त्योहारों की भरमार होगी, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण त्योहार शारदीय नवरात्रि का होगा। यह नौ दिनों का पर्व मां दुर्गा की आराधना के लिए मनाया जाता है और हिंदू धर्म के अनुयायी भारत और दुनिया भर में इस दौरान मां के नौ रूपों की पूजा करते हैं। नवरात्रि के दौरान लोग कलश स्थापना कर उपवास रखते हैं और बड़े पैमाने पर पंडालों तथा मंदिरों में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। शारदीय नवरात्रि हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह में आती है, जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार सितंबर और अक्टूबर के बीच पड़ता है। यह भी पढ़ें : कमरे में अकेला सोया था हर्ष, सुबह दरवाजे खोलते ही मची चीख-पुकार

कब शुरू हो रहे शारदीय नवरात्र?

शारदीय नवरात्रि 2024 में 3 अक्टूबर यानी कल से शुरू हो रही है, जो गुरुवार के दिन है और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को यह प्रारंभ होगी। यह नौ दिवसीय पर्व 12 अक्टूबर, 2024 को दशहरे के साथ समाप्त होगा। वर्ष में चार नवरात्रि पर्व होते हैं, जिनमें माघ, चैत्र, आषाढ़ और शारदीय नवरात्रि शामिल हैं। इनमें से शारदीय नवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे महा नवरात्रि भी कहा जाता है।

क्या है कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त?

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन, 3 अक्टूबर 2024 को कलश स्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं। अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 3 अक्टूबर को सुबह 12:19 पर होगा और इसका समापन 4 अक्टूबर को सुबह 2:58 पर होगा।
  • कलश स्थापना का पहला शुभ मुहूर्त 3 अक्टूबर को सुबह 6:19 से 7:23 तक है।
  • दूसरा शुभ मुहूर्त दोपहर 11:40 से 12:33 तक रहेगा।
भक्त इन दोनों समय में अपने घर में कलश स्थापना कर सकते हैं और नवरात्रि का शुभारंभ विधि-विधान से कर सकते हैं। यह भी पढ़ें : हिमाचल पर मेहरबान मोदी सरकार: खत्म कर दी CM सुक्खू की सबसे बड़ी परेशानी

कैसे करते हैं कलश की स्थापना?

कलश पूजा विधि इस प्रकार है। सबसे पहले एक मिट्टी का पात्र लें और उसमें थोड़ी सी मिट्टी डाल दें। फिर जौ के बीज डालकर उसमें पानी का हल्का छिड़काव करें। इसके बाद तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और लोटे के ऊपरी हिस्से पर मौली बांध दें। लोटे में साफ जल के साथ गंगाजल, दूब, अक्षत, सुपारी और कुछ पैसे डालें। फिर इस लोटे को पीपल या आम की पत्तियों से सजाएं। लोटे के ऊपर एक नारियल को लाल चुनरी में लपेटकर मौली से बांधें और इसे लोटे के ऊपर रखें। कलश स्थापना के बाद नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें। ऐसा करने से मां दुर्गा प्रसन्न होकर भक्तों को सुख और समृद्धि का वरदान देती हैं।

क्यों कहा जाता है शारदीय नवरात्रि?

पितृपक्ष के समाप्त होने के अगले दिन से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है, इसलिए इसे श्राद्ध नवरात्रि भी कहा जाता है। आज महालया के साथ पितृपक्ष समाप्त होगा और कल से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ होगी। यह भी पढ़ें : हिमाचल : फर्जी व्हाट्सऐप ग्रुप और ऐप ने किया शिकार, लगी 20 लाख की चपत

क्या है इससे जुड़ी कथा?

धार्मिक कथाओं के अनुसार, शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा की महिषासुर नामक राक्षस पर विजय की याद में मनाई जाती है। नौ दिनों की लड़ाई के बाद मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और इसी कारण उन्हें महिषासुरमर्दिनी के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के 10वें दिन, जिसे विजयादशमी कहा जाता है, भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी और देवी सीता को वापस पाया था।

क्या है नवरात्रि का महत्व?

नवरात्रि का त्योहार मां दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित होता है, जिसमें हर दिन एक अलग देवी की पूजा की जाती है। यह पर्व अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है और सदाचार व बहादुरी के गुणों की शिक्षा देता है। भक्त नवरात्रि के पहले या आखिरी दो दिनों में उपवास रखते हैं, जबकि कुछ लोग पूरे नौ दिनों का उपवास करते हैं। इस दौरान दुर्गा चालीसा और दुर्गा स्तोत्र का पाठ किया जाता है। यह भी पढ़ें : हिमाचल : घास काटने पर हुआ विवाद- मां और बेटे ने शख्स पर किए कई वार नवरात्रि का हर दिन मां दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित होता है, जैसे शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी और चंद्रघंटा। यह पर्व फसलों का भी त्योहार माना जाता है, जिसमें देवी को जीवन और सृजन के पीछे की मातृ शक्ति के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मां दुर्गा की भक्ति से पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

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