कुल्लू। देवभूमि कहलाए जाने हिमाचल प्रदेश के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है। यहां के लोगों देवी-देवताओं में बहुत आस्था रखते हैं। हिमाचल के लोग अपने देवी-देवताओं को परिवार के सदस्य की तरह मानते हैं। यहां के पारंपरिक त्योहारों और मेलों में देवताओं का विशेष स्थान होता है।
श्मशान की भस्म से होता है श्रृंगार
आज हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जिनका श्रृंगार श्मशान की भस्म से होता है। इन देवता साहिब का स्वागत भक्त कांटे एवं बिच्छू बूटी बरसाकर करते हैं।
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हम बात कर रहे हैं त्रिलोकनाथी श्रीखंडेश्वर शमशरी महादेव की- जो कहलाते हैं चार गढ़ों के मढ़पति और इनके रथ में नजर आते हैं त्रिमुखी महादेव के अद्भुत मोहरे।
कैसे होता है देवता साहिब का स्वागत?
आनी उपमंडल के आराध्य देव और बाहरी सराज के राजा कहे जाने वाले शमशरी महादेव का अधिकार क्षेत्र पूरे 45 गांवों में फैला हुआ है। मगर जब कभी देवता साहिब शगागी क्षेत्र में पहुंचते हैं- तो उनके भक्त देवता साहिब की पालकी पर आटा, कुंगशी, घास, कांटे और बिच्छू बूटी बरसाकर उनका स्वागत करते हैं।
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दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आनी का शगागी क्षेत्र पहले मलाणा गांव के प्रसिद्ध देवता जमलू के अधिकार क्षेत्र में आता था। मगर फिर एक दिन शमशरी महादेव शगागी क्षेत्र में पहुंचे और इस इलाके को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया।
ग्रामीणों ने कर दिया हमला
ऐसे में जब गांववालों को इस बात का पता चला तो वे आटा, कुंगशी, घास, कांटे, बिच्छू बूटी जैसी चीजें लेकर देवता साहिब पर हमला कर दिया। मगर शमशरी महादेव की इस युद्ध में जीत हुई थी। जिसके बाद जमलू देवता वापिस अपने गांव चले गए और शमशरी महादेव ने इस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।
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कहां है देवता साहिब का मंदिर?
इन देवता साहिब का दो हजार साल पुराना मंदिर आनी से महज तीन किलोमीटर शमशर गांव में आज भी मौजूद है। जहां आज भी उज्जैन के महाकालेश्वर की तर्ज पर शमशरी महादेव की भस्म आरती होती है। साथ ही शमशरी महादेव का भी रोजाना शमशान की भस्म से श्रृंगार किया जाता है।