कांगड़ा। हिमाचल प्रदेश को देवी-देवताओं की भूमि कहा जाता है। देवभूमि के मंदिरों से ना सिर्फ स्थानीय लोग बल्कि देश-विदेश के लोग भी अटूट विश्वास रखते हैं। आज हम आपको हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित चामुंडा देवी मंदिर के बारे में बताएंगे।
यह मंदिर धर्मशाला शहर से 15 किलोमीटर दूर बनेर खड्ड के किनारे स्थित है। यहां सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है। आज हम आपको बताएंगे कि कैसे इस चामुंडा नाम पड़ा और इस चामुंडा देवी मंदिर की विशेषता, इतिहास और कहानी क्या है।
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पिंडी रूप में स्थापित हैं भगवान शिव
आपको बता दें कि मां चामुंडा का नाम चंड और मुंड नामक राक्षसों का वध करने के बाद पड़ा। चामुंडा देवी मंदिर में भगवान शिव भी पिंडी रूप में स्थापित हैं। इसलिए इस धाम को चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है।
मान्यता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता शक्ति का ऐसा निवास स्थल है- जहां वे अपने विश्व भ्रमण के दौरान विश्राम करते हैं।
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चामुंडा देवी मंदिर का इतिहास
चामुंडा देवी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और इसके निर्माण की सटीक तारीख का कोई प्रमाण नहीं है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर लगभग 700 साल पुराना है। मंदिर का पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार कई बार किया गया है। इसका वर्तमान स्वरूप, हालांकि प्राचीन है, लेकिन संरक्षित और पुनः स्थापित किया गया है। हिमाचल प्रदेश के राजाओं ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और इसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया।
महादेव ने किया था मां का क्रोध शांत
कथाओं के अनुसार, जब मां चामुंडा ने चंड और मुंड का वध किया था। तब वे बहुत गुस्से में थीं। माता के गुस्से से स्थानीय जनता में भय फैल गया था। जिसके चलते लोगों ने खुद ही परिवार से एक व्यक्ति की बलि देना तय कर लिया था।
इसी दौरान एक दिन जब एक महिला के बेटे की बलि देनी की बारी आई। उस महिला ने अपना बेटा भगवान शिव की अराधना से पाया था। मगर महिला ने अपने बेटे को भगवान शिव की अराधना के लिए भेज दिया। इसके बाद महिला ने भगवान शिव से अपने बेटे की रक्षा की प्रार्थना की।
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भगवान शिव ने धारण किया बच्चे का रूप
भगवान शिव ने उस बच्चे का रूप धारण कर उसे खेल में उलझा दिया। जब बलि में देरी हुई तो माता चामुंडा का क्रोध और बढ़ गया और वे खुद महिला के घर पहुंच गई। इस दौरान बच्चे ने माता से कहा कि वह आ रहा था, लेकिन शिव ने रोक दिया।
शव ना आए तो जलाया जाता है घास का पुतला
यह सुनकर माता का क्रोध और बढ़ गया, लेकिन जब माता ने शिव को देखा तो वे शांत हो गईं। फिर शिव भगवान ने माता चामुंडा से माफी मांगने को कहा और उसी जगह पर खुद को और माता को स्थापित होने का आदेश दिया। बता दें कि यह परंपरा आज भी चल रही है- जब बलि के लिए शव नहीं आता है तो यहां तीर्थ मोक्षधाम में घास का पुतला जलाया जाता है।
चामुंडा देवी की पौराणिक कथा
चामुंडा
का नाम देवी दुर्गा के एक उग्र और युद्धात्मक रूप से जुड़ा हुआ है। देवी दुर्गा ने चंड और मुंड नामक दो राक्षसों का वध किया था, जिनसे यह नाम निकला। चामुंडा देवी के रूप में दुर्गा ने उन दोनों राक्षसों को हराकर धरती से बुराई का नाश किया।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी चामुंडा ने महिषासुर मर्दिनी के रूप में युद्ध किया और चंड-मुंड का वध कर विजय प्राप्त की। इस कारण चामुंडा देवी को "चंड-मुंड विनाशिनी" भी कहा जाता है। कथा के अनुसार, देवी चामुंडा ने ऋषि मार्कंडेय की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और उनकी इच्छा के अनुसार इस स्थान पर अपने निवास का वरदान दिया।
मंदिर की धार्मिक मान्यता
चामुंडा देवी मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में भी माना जाता है, जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। इस कारण यह स्थान विशेष रूप से पवित्र और शक्ति से भरा हुआ माना जाता है। यहां आने वाले भक्तों की मान्यता है कि देवी चामुंडा उनकी सभी समस्याओं और कष्टों का निवारण करती हैं।
देवी को शक्ति, साहस और शत्रुओं के नाश की देवी माना जाता है। मंदिर में देवी की मूर्ति को अत्यधिक शक्तिशाली माना जाता है, और यहां की पूजा-अर्चना से मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
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मंदिर तक पहुंचने का मार्ग
चामुंडा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में धर्मशाला और पालमपुर के बीच स्थित है। सड़क मार्ग से यह मंदिर अच्छे से जुड़ा हुआ है और देश के विभिन्न भागों से श्रद्धालु यहां आते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट में स्थित है।