शिमला। हिमाचल प्रदेश, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, भारत का एक ऐसा क्षेत्र है जहां हर कण-कण में देवी-देवताओं का वास माना जाता है। यहां की घाटियों, पहाड़ों और नदियों को पवित्रता और आध्यात्मिकता से जोड़ा गया है। हिमाचल में हजारों मंदिर, धार्मिक स्थलों और परंपराओं का संगम है, जहां हर गांव और हर समुदाय का अपना देवता होता है।
1500 वर्षों तक चली थी दुश्मनी
यहां की संस्कृति और जीवन शैली देवी-देवताओं के आशीर्वाद के प्रतीक माने जाते हैं, जो इस भूमि को पवित्र और विशेष बनाते हैं। आज हम आपको हिमाचल के दो ऐसे देवताओं के बारे में बताएंगे- जिनके गांव की दुश्मनी 1500 साल तक चली।
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दो देवातओं के गांव
हिमाचल के दो देवताओं की दुश्मनी का यह विवाद एक भक्त की हत्या से शुरू हुआ था और दो गांवों की रिश्तेदारी टूट गई थी।
हम बात कर रहे हैं सिरमौर जिले के आराध्य शिरगुल देवता और बिज्जट महाराज के बीच ठनी ‘देव रंजिश’ की- जो पूरे 1500 वर्षों तक चली।
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शिरगुल महाराज की पालकी
लोग बताते हैं कि 1500 साल पहले देवामानल गांव के देव कारिंदे भगवान शिरगुल के जगराते को लेकर चाढ़ना गांव गए थे। जहां पर किसी बात को लेकर दोनों गांव के लोगों में विवाद हो गया और शिरगुल महाराज के एक कारिंदे को चाढ़ना के लोगों ने मौत के घाट उतार दिया। मगर अति तो तब हो गई, जब कारिंदे के कटे सिर को वहां के लोगों ने शिरगुल भगवान की पालकी में डाल दिया।
रिश्तेदारी को खत्म कर दिया
इसके बाद इन दोनों गांव के बीच ये दुश्मनी ऐसी ठनी कि पहले दोनों गांवों में शाटा-पाशा यानी आपसी रिश्तेदारी को खत्म किया और फिर साथ में दैवीय कार्य करने की परंपरा भी टूट गई। मगर अब इन दोनों देवताओं की रंजिश का अंत कैसे हुआ, उसे भी जान लेते हैं।
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कैसे खत्म हुई दुश्मनी?
बात 2015 की बताई जाती है- जब दोनों देवताओं की शक्तियां उनके अपने गूर में प्रवेश कर गईं और उन्हें दोनों देवताओं का संयुक्त जागरण कराने का आदेश दिया। जिसे दोनों गांव के लोगों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस तरह से 1500 वर्ष पहले की खांद यानी रंजिश को देवताओं के आदेश पर ही खत्म कर दिया गया।