शिमला। देवभूमि हिमाचल प्रदेश में आज भूंडा महायज्ञ का आगाज हो गया है। यह एतिहासिक भूंडा महायज्ञ शिमला के रोहडू़ में आयोजित किया गया है। ऊपरी हिमाचल में भूंडा महायज्ञ को लेकर लोगों में काफी उत्साह दिख रहा है। रोहड़ू की स्पैल घाटी में यह महायज्ञ आज से लेकर 6 जनवरी तक चलेगा।
भूंडा महायज्ञ का आगाज
बताया जा रहा है कि इस एतिहासिक महायज्ञ में 100 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। एतिहासिक भूंडा महायज्ञ में हिमाचल के CM सुक्खू भी शिरकत करेंगे।
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लाख से भी ज्यादा लोग होंगे शामिल
आपको बता दें कि पिछले तीन साल से 9 गांव के लोग एतिहासिक भूंडा महायज्ञ की तैयारियोंं में जुटे हुए हैं। यह लोग एक लाख से भी ज्यादा लोगों की खातिरदारी करेंगे।
39 साल बाद होने जा रहा महायज्ञ
शिमला की स्पैल वैली में पूरे 39 साल बाद होने जा रहे भूंडा महायज्ञ में तीन स्थानीय देवता और तीन परशुराम शामिल होंगे। इस बार भूंडा महायज्ञ का आयोजन स्पैल वैली के देवता बकरालू मंदिर दलगांव में पूरे चार दिनों के लिए किया जा रहा है, जिसमें स्पैल वैली के साथ रामपुर क्षेत्र के लोग भी शामिल होंगे।
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भूंडा महायज्ञ की विशेषता
स्पैल वैली के लोग इस आयोजन की प्लानिंग तीन साल से कर रहे हैं और अप्रैल माह से ही मुंजी यानी एक विशेष घांस को काटकर लंबी रस्सी बनाने में जुटे हैं। जिसे एक ऊंची पहाड़ी से नीचे की तरफ बांधा जाएगा और फिर रस्सी पर लगी काठ की घोड़ी पर सवार होकर एक शख्स फिसलते हुए दूसरी पहाड़ी तक जाएगा।
सूरत राम करेंगे पहाड़ी पार
इस अनुष्ठान में बेड़ा जाति से संबंध रखने वाले शख्स को घास से बनी रस्सी पर फिसलते हुए गहरी खाई को पार करना होता है। इस बार के भूंडा महायज्ञ में बेड़ा सूरत राम- 9 वीं बार घास से बनी रस्सी से फिसलकर इस रस्म को निभाएंगे।
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चार दिन चलेगा महायज्ञ
- 2 जनवरी- संघेड़ा रस्म से महायज्ञ की शुरुआत
- 3 जनवरी- शिखा व फेर का पूजन
- 4 जनवरी- बेड़ा रस्सी पर चढ़ाया जाएगा
- 5 जनवरी- उछड़-पाछड़ रस्म के साथ इस महायज्ञ का समापन
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क्या है मानय्ता?
मान्यता है कि भूंडा महायज्ञ की शुरुआत भगवान परशुराम ने की थी। कहा जाता है कि इस महायज्ञ में परशुराम ने नरमुंडों की बलि दी थी। यही कारण है कि इसे नरमेघ यज्ञ भी कहा जाता है। भूंडा महायज्ञ करवाने का ये अनुष्ठान, पूर्ववर्ती बुशैहर रियासत के राजाओं की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के निरमंड, रामपुर बुशहर और रोहड़ू में इसे सदियों से मनाया जा रहा है।