शिमला। भारतीय जनता पार्टी एक संगठित और अनुशासनशील पार्टी है। पार्टी में यदि बगावत हो या अनुशासन का पालन ना हो तो ऐसे नेताओं पर तुरंत नियमानुसार कार्यवाई की जाती है, ऐसा कम से कम पार्टी के समय-समय पर लिए गए कुछ एक्शन के आधार पर कहा जा सकता है।
मगर अब हिमाचल प्रदेश की हालिया स्थिति को देखकर लगता है कि पार्टी में अनुशासनहीनता या बगावत की परिभाषा ही बदल गई है। क्योंकि एक पार्टी के लिए सबसे बड़ा नुकसान बागियों की वजह चुनाव हारना होता है, लेकिन भाजपा में तो जैसे इस नुकसान से समझौता होता दिख रखा रहा है।
बागियों पर एक्शन मोड में नहीं भाजपा
चुनाव हारने के बाद भी न बागियों पर कोई एक्शन होता दिख रहा है और ना ही उन नेताओं पर जो चुनावों का नेतृत्व कर रहे थे। प्रदेश के ऊना जिले में प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि इस बैठक के बाद भीतरघातियों और बागियों की मुसीबतें बढ़ेंगी लेकिन भाजपा की शांति ने मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस विषय पर सिर्फ इतना ही कहा गया कि ना रिपोर्ट मिली है ना शिकायत।
सत्ता में वापिस कब्ज़ा करने का सपना देख रही थी भाजपा
बीते 2 महीनों में हिमाचल प्रदेश में 2 बार विधानसभा उपचुनाव हुए। पहले 6 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा सिर्फ 2 सीटें हासिल के सकी और उसके बाद 3 विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट। वहीं, इन दोनों ही उपचुनावों को जीतना जितना कांग्रेस के लिए जरूरी था उससे कहीं ज्यादा भाजपा के लिए।
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क्योंकि कहीं ना कहीं मध्यावधि से पूर्व ही उपचुनावों करवाने में भाजपा की बड़ी भूमिका थी। यह एक ऐसा मौक़ा था जब भाजपा प्रदेश की सत्ता में वापिस कब्ज़ा करने का सपना देख रही थी लेकिन इस भाजपा के अपनों ने ही उसके इस सपने को पूरा नहीं होने दिया। तो फिर आखिर नुकसान की वजह यानी कमज़ोर नेतृत्व और बागियों पर इस बार कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही?
पार्टी में अंतर कलह के मिले थे सीधे संकेत
1 जून को 6 सीटों पर हुए उपचुनाव में लाहौल स्पीति से पूर्व मंत्री रामलाल मारकंडा बागी हो गए थे, उनकी बगावत और पार्टी कैडर की नाराज़गी का असर यह हुआ की वो परिणामों में दूसरे स्थान पर रहे। जबकि भाजपा ने कांग्रेस के बागी रवि ठाकुर को प्रत्याशी बनाया था, जो कि तीसरे स्थान पर आए।
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धर्मशाला में बेशक कांग्रेस से बागी होकर भाजपा में शामिल हुए सुधीर शर्मा की जीत हुई लेकिन यहां भी राकेश चौधरी ने दूसरी बार बागी होकर आजाद चुनाव लड़ा और यह पार्टी में अंतर कलह का सीधा संकेत था।
भाजपा नहीं कर पाई बगावत के संकेतों को डीकोड
इसी तरह बड़सर में जीत के बाद भी अंतर्कलह नहीं छुप सका। सुजानपुर में पूर्व प्रत्याशी कैप्टन रणजीत सिंह ने पार्टी ही छोड़ दी और फिर कांग्रेस के टिकट पर जीते, गगरेट में भाजपा नेता राकेश कालिया ने पार्टी छोड़ी और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत गए। कुटलेहड़ में पूर्व मंत्री वीरेंदर कंवर की टिकट देवेंदर कुमार भुट्टो को देने पर भी बगावत जगजाहिर हुई। मगर इसके बावजूद भी भाजपा बगावत के इन संकेतों का मतलब नहीं डीकोड कर पाई।
13 जुलाई के परिणाम में भी दिखी बगावत
क्योंकि जब 13 जुलाई को फिर 3 सीटों पर उपचुनाव परिणाम आने के बाद एक बार फिर पार्टी के भीतर बगावत देखने को मिली और इसका असर पहले की तरह चुनाव परिणामों पर भी पड़ा। नालागढ़ में भाजपा के बागी हरप्रीत सैनी 13 हजार से अधिक वोट ले गए और केएल ठाकुर को करीब 8 हजार वोटों से हार झेलनी पड़ी।
धवाला ने जमकर निकाली थी भड़ास
इसी तरह, देहरा में भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री रमेश धवाला ने संगठन के प्रत्याशी पर जमकर भड़ास निकाली। धवाला इससे पहले भी लगातार भाजपा नेताओं के खिलाफ बोलते रहे हैं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
लोकसभा की चारों सीट पर जीत से भाजपा संतुष्ट
वहीं, अब भाजपा कार्यसमिति की मीटिंग के बाद पार्टी के मीडिया विभाग के मुख्य प्रभारी रणधीर शर्मा ने कहा है कि अभी पार्टी के पास ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है और ना ही इस पर चर्चा हुई है। जब रिपोर्ट आएगी तो देखा जाएगा। उधर, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल ने कहा है कि लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस के जबड़ों से निकालकर चारों सीटें जीती हैं।