शिमला। देश के प्रधानमंत्री ने बीते कल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सेकुलर सिविल कोड की बात छेड़ी। उन्होंने कहा कि देश की मांग सेकुलर सिविल कोड की है। वहीं, हिमाचल प्रदेश के पूर्व CM व नेता विपक्ष जयराम ठाकुर ने यूनियन सिविल कोड को लेकर विपक्ष पर जमकर निशाना साधा।
हालांकि, आप जानते हैं कि यह सेकुलर सिविल कोड UCC क्या है और क्यों इसको लेकर मांग उठ रही है। अगर सेकुलर सिविल कोड देश में लागू हो जाएगा तो क्या होगा?
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क्या बोले नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर?
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट हमें यूनिफॉर्म सिविस कोड के लिए कह रहा है। देश के संविधान निर्माताओं का भी यही सपना था- जो कानून धर्म के आधार पर देश को बांटते हैं या जो ऊंच-नीच का कारण बनते हैं। वैसे कानूनों के लिए देश में कोई जगह नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा हमने सांप्रदायिक सिविल कोड में 75 साल बिताए हैं। अब हमें सेक्युलर सिविल कोड की तरफ जाना होगा।
हिमाचल में लागू होगा तो क्या बदलेगा- 5 पॉइंट्स में समझें
- पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी पति की होगी।
- लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा।
- पति और पत्नी में अनबन होने पर उनके बच्चे की कस्टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी।
- बच्चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी।
- किसी भी व्यक्ति के साथ उसके धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होगा।
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क्या है सेकुलर सिविल कोड?
समान नागरिक संहिता UCC का मतलब है कि एक ऐसा कानून- जो भारत के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो, चाहे उनका धर्म, जाति, लिंग या अन्य किसी भी प्रकार की पहचान क्यों ना हो।
समान नागरिक संहिता का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून बनाना है- जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और संपत्ति से संबंधित हो।
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धार्मिक कानूनों का स्थानांतरण:
वर्तमान में भारत में विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं। जैसे हिंदुओं के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ और ईसाइयों के लिए ईसाई विवाह अधिनियम। समान नागरिक संहिता इन सभी अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों को एक समान कानून में समाहित करने का प्रयास है।
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धर्मनिरपेक्षता और समानता:
समान नागरिक संहिता का मुख्य उद्देश्य धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना और सभी नागरिकों के लिए समानता सुनिश्चित करना है। इसका उद्देश्य यह है कि किसी भी व्यक्ति के साथ उसके धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव न हो।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता की बात कही गई है- जो राज्यों को निर्देश देता है कि वे पूरे भारत में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करें। यह संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा है, जो सरकार को इस दिशा में प्रयास करने के लिए मार्गदर्शन देता है।
समान नागरिक संहिता को लेकर समाज में अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। कुछ इसे धर्मनिरपेक्षता और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं। जबकि अन्य इसे धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं। धार्मिक समुदायों में अलग-अलग दृष्टिकोण हैं कि उनके धार्मिक कानूनों को बनाए रखा जाना चाहिए या नहीं।
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क्या होगा अगर लागू होगी समान नागिरक संहिता?
देश में अगर समान नागरिक संहिता लागू होगी तो-
- शादी, तलाक, भरणपोषण, गोद लेना व संरक्षक और उत्तराधिकार व विरासत के नियम कानून सभी धर्मों के लिए समान हो जाएंगे।
- पर्सनल लॉ देखे जाएं तो हिंदू महिला के अधिकार अलग हैं और मुस्लिम महिला के अधिकार अलग दोनों हर तरह से समान हैं। मगर धर्म अलग होने के कारण संपत्ति पर, बच्चा गोद लेने संरक्षक बनने के अधिकार यहां तक कि शादी के नियम और तालाक व गुजारा भत्ता के अधिकार भी दोनों के अलग-अलग हैं।
कब हुई थी समान नागरिक संहिता की शुरुआत?
समान नागरिक संहिता UCC की अवधारणा भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही चर्चा में आ गई थी। हालांकि, इसे औपचारिक रूप से भारत के संविधान में शामिल किया गया और इसके लिए संवैधानिक प्रावधान किया गया।
ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून लागू थे। ब्रिटिश प्रशासन ने पर्सनल लॉ को लेकर कोई व्यापक सुधार नहीं किया, क्योंकि वे धार्मिक और सामाजिक संवेदनाओं को छूने से बचते थे।
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- संविधान सभा और संविधान निर्माण:
समान नागरिक संहिता की चर्चा संविधान सभा में हुई थी, जहां इसे भारतीय संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में शामिल किया गया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के लिए यह निर्देश है कि वह पूरे भारत में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करे।
संविधान सभा में इस मुद्दे पर व्यापक बहस हुई थी। कुछ सदस्यों ने इसकी पुरजोर वकालत की, क्योंकि उनका मानना था कि यह देश की एकता और सामाजिक सुधार के लिए आवश्यक है। वहीं, कुछ अन्य सदस्यों ने धार्मिक स्वतंत्रता के सम्मान और पर्सनल लॉ के संरक्षण की बात की।
गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है- जहां समान नागरिक संहिता लागू है। यह संहिता गोवा के पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के समय से चली आ रही है और राज्य के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होती है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। गोवा का यह उदाहरण भारत के अन्य हिस्सों के लिए एक मॉडल के रूप में देखा जाता है।
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अब तक देश में क्यों लागू नहीं हो पाया UCC?
भारत का सामाजिक ढांचा विविधता से भरा हुआ है। अगर आबादी के आधार पर देखें तो देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं, लेकिन अलग राज्यों के हिंदुओं में ही धार्मिक मान्यताएं और रीति-रिवाजों में काफी अंतर देखने को मिल जाएगा। वहीं, मुस्लमानों में शिया, सुन्नी, बहावी आदि में रीति रिवाज और नियम अलग-अलग हैं।
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ऐसे ही किसी समुदाय में पुरुष कई शादी कर सकते हैं। कहीं शादीशुदा महिला को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलती है तो कहीं बेटियों को संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया है। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद यह सब नियम खत्म हो जाएंगे।
क्या होंगे बड़े बदलाव?
समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद कई बड़े बदलाव होंगे। जैसे-
- पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी पति की होगी।
- मुस्लिम महिलाओं को बच्चे गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा।
- मुस्लिम महिलाओं के हलाला और इद्दत से छुटकारा मिल जाएगा।
- लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा।
- पति और पत्नी में अनबन होने पर उनके बच्चे की कस्टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी।
- बच्चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी।