शिमला। हिमाचल प्रदेश में इन दिनों विधानसभा का मॉनसून सत्र चल रहा है। चार दिनों पहले शुरू हुई सदन की कार्यवाही के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच लगातार टकराव देखने को मिल रहा है। एक ओर जहां विपक्ष सवालों की घेराबंदी से सरकार को घेरने की कोशिशें कर रहा है। वहीं, इस इस सत्र के लिए सरकार भी पूरी तैयारी में नजर आ रही है और कहीं ना कहीं विपक्ष पर भारी ही पड़ रही है।
सदन में विपक्ष के तीखे सवालों से भी नहीं घिर रही सुक्खू सरकार
क्योंकि विपक्ष के स्वर जितने अधिक तीखे हो रहे हैं, सरकार उतनी ही कुशलता से अपनी जवाबदेही पर खरी उतर रही है। गौर रहे कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से अबतक विधानसभा के कुल 5 सत्र संपन्न हो चुके हैं और 6वां चल रहा है। मगर सदन में ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है, जब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष की भूमिका में कमतर नजर आ रही है।
यह भी पढ़ें: कल 1 सितंबर से होंगे यह बदलाव, आप भी हो जाएं तैयार; बढ़ सकते हैं इनके दाम
कैसे बढ़ा है सुक्खू एंड कंपनी का कॉन्फिडेंस
वहीं, दो-दो बार अपनी सरकार बचाने में सफल हुई सुक्खू एंड कंपनी का कॉन्फिडेंस देखते ही बन रहा है। तो फिर क्या हैं वो चार वजहें- जिनकी वजह से सरकार फॉर्म में है और विपक्ष आउट ऑफ़ फॉर्म..
पहली वजह: उपचुनावों के बावजूद भी 40 पर बरकरार : इसी साल के फ़रवरी महीने में हुए राज्यसभा चुनावों के दौरान हुई क्रॉस वोटिंग ने बेशक सरकार का कॉन्फिडेंस हिलाकर रख दिया था। मगर पहले 6 सीटों पर हुए उपचुनावों में 4 सीटों पर जीत और फिर 3 सीटों पर हुए उपचुनावों में 2 सीटों पर मिली जीत ने कांग्रेस सरकार के कॉन्फिडेंस को अच्छा ख़ासा बूस्ट दिया। वहीं, 6 विधायकों के टूटने के बावजूद भी कांग्रेस ने अपने 40 विधायकों वाले आंकड़े को बरकरार रखा। इस कारण से सीएम सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस का विधायक दल आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रहा है।
दूसरी वजह: कम हुई कलह- सामंजस्य सुधरा
- सुखविंदर सिंह सुक्खू के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही हिमाचल कांग्रेस के अन्य गुटों और सुक्खू गुट के बीच लगातार अंदरूनी कलह देखने को मिल रही थी।
- विपक्ष रणनीतिक तौर पर भारी पड़ रहा था और संगठन व सरकार के बीच तालमेल की कमी होने के कारण सत्तापक्ष कई मामलों में बैकफुट पर नजर आ रहा था।
- मगर लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों के बाद CM सुक्खू कांग्रेस पार्टी में एक मजबूत नेता बनकर उभरे हैं। वहीं, कांग्रेस के अन्य गुटों के नेताओं ने भी अब उन्हें अपना नेता स्वीकार कर लिया है। इस कारण से पार्टी के भीतर की कलह भी समाप्त हो गई है और सत्तापक्ष सदन में भी मजबूत नजर आ रहा है।
तीसरी वजह: मुख्यमंत्री को मिल रहा है आलाकमान का सपोर्ट:
- हिमाचल प्रदेश में बनी कांग्रेस की सरकार उतर भारत में कांग्रेस की इकलौती सरकार है। ऐसे में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इसे बचाए रखने के लिए लगातार अपनी तत्परता दिखा रहा है।
- कांग्रेस में हुई कई कलहों के बाद आलाकामान ने अपने सिपाहियों को हिमाचल सुलह करावाने के लिए भी समय रहते भेज दिया था। वहीं, दो-दो बार अपनी सरकार बचाने में सफल हुए CM सुक्खू से कांग्रेस आलाकामान खुश नजर आ रहा है।
- जबकि, दूसरी तरफ जयराम ठाकुर की बात करें तो कहीं ना कहीं ये साफ़ नजर आता है कि पूर्व सीएम पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा पहले की तरह अब नहीं रहा है। इस कारण से सदन में भी जयराम पहले के मुकाबले कहीं ना कहीं कमजोर से नजर आ रहे हैं।
चौथी वजह: सुस्त नजर आ रही है भाजपा:
- इस मानसून सत्र से पहले आयोजित हुए विधानसभा सत्रों में प्रदेश की जनता ने भाजपा को विपक्ष की बेहतरीन भूमिका निभाते हुए देखा था। भाजपा विधायक दल के नाते कभी किसान तो कभी ग्वाला बनकर विधानसभा पहुंचते थे और बड़े ही रोचक अंदाज में सरकार की नीतियों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करवाते थे।
- मगर दो-दो उपचुनावों में मिली हार के बाद भाजपा को देखकर ऐसा लग रहा है कि मानो अब उनके पास लड़ने के लिए कुछ बचा ही नहीं। भाजपा नेताओं द्वारा इस मानसून सत्र में लगातार वॉकआउट किया जा रहा है और दूसरी तरफ सरकार भाजपा के इन वॉकआउट को उसकी कमी के तौर पर दिखाकर पॉइंट्स अर्जित कर रही है।
बहरहाल, कोई भी सरकार सही ढंग से काम करे इसके लिए विपक्ष का सशक्त होना जरूरी होता है। मगर पूर्व के विधानसभा सत्रों के दौरान फुल कॉन्फिडेंस में नजर आने वाली भाजपा का आवेश कहीं ना कहीं कम होता नजर आ रहा है। अब भाजपा अपने कॉन्फिडेंस को वापस पाने के लिए क्या कदम उठाती है यह देखने वाली बात होगी। बाकी, सोमवार को एक बार फिर मानसून सत्र चालू हो जाएगा और ऐसे हालातों में यह देखना काफी अधिक दिलचस्प हो जाएगा कि अब भाजपा आगे क्या करती है।