शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट ने आज कांग्रेस सरकार को बड़ा झटका देते हुए सीपीएस की नियुक्ति को निरस्त करने का फैसला दिया है। अब हिमाचल की सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार सीपीएस मामले में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। यह जानकारी हिमाचल सरकार के एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने दी है।
क्या बोले हिमाचल सरकार के एडवोकेट
एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने बताया कि सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल करने का निर्णय लिया है। प्रदेश की सुक्खू सरकार का मानना है कि हिमाचल हाईकोर्ट ने जिस असम के विमलांशु राय केस को देखते हुए फैसला सुनाया है, उससे हिमाचल का सीपीएस एक्ट अलग है। जिसके चलते ही हिमाचल सरकार ने होईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला लिया है।
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कैसे असम से अलग है हिमाचल का सीपीएस एक्ट
एडवोकेट अनूप रतन ने बताया कि सीपीएस जुड़ा हिमाचल प्रदेश का एक्ट असम से बिलकुल अलग है। असम में सीपीएस को मंत्रियों के बराबर शक्तियां दी गई थीं। सीपीएस को फाइलों पर हस्ताक्षकर करने का अधिकार था। लेकिन हिमाचल में ऐसा कुछ नहीं था। हिमाचल में ना तो सीपीएस को मंत्रियों के बराबर शक्तियां दी गई थी और ना ही उन्हें फाइल पर साइन करने का अधिकार था। ऐसे में असम और हिमाचल का सीपीएस एक्ट एक जैसा नहीं है।
किसती तर्ज पर सुनाया हाईकोर्ट ने फैसला
एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने बताया कि सीपीएस मामले पर हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने असम के विमलांशु राय केस में सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट की तर्ज पर फैसला लिया है। हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने का फैसला लिया है और जल्द इस मामले की सुनवाई की अपील की जाएगी।
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हाईकोर्ट ने निरस्त कीं सीपीएस की नियुक्तियां
बता दें कि बुधवार 13 नवंबर को हिमाचल हाईकोर्ट ने मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव एक्ट 2006 की वैधता को खत्म कर दिया है। हाईकोर्ट ने सुक्खू सरकार के सभी छह सीपीएस की सुविधाओं को वापस लेने के भी आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अब सुक्खू सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रूख करने का फैसला लिया है।
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सुक्खू सरकार ने बनाए थे छह सीपीएस
बता दें कि हिमाचल में कांग्रेस सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने छह विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव बनाया था। जिसमें रोहड़ू के विधायक एमएल ब्राक्टा, कुल्लू के सुंदर सिंह ठाकुर, अर्की के संजय अवस्थी, पालमपुर के आशीष बुटेल, दून के राम कुमार चौधरी और बैजनाथ के विधायक किशोरी लाल शामिल हैं। सुक्खू सरकार इन सभी सीपीएस को सरकारी गाड़ी, दफ्तर, स्टाफ और मंत्रियों के समान वेतन दे रही थी।
कांग्रेस सरकार में सीपीएस को कितने मिलते थे वेतन भत्ते
- सीपीएस का मूल वेतन 65 हजार रुपए है। भत्ते मिलाकर ये वेतन 2.20 लाख रुपए प्रति महीना पहुंच जाता है।
- सीपीएस को गाड़ी, स्टाफ अलग भी मुहैया करवाया जाता है।
- विधायकों और सीपीएस के वेतन में 10 हजार रुपए का अंतर है।
- विधायकों का वेतन और भत्ते प्रतिमाह 2.10 लाख रुपए है।
वीरभद्र-धूमल सरकार ने बनाए थे सीपीएस
- पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2013 में 10 सीपीएस नियुक्त किए थे।
- प्रेम कुमार धूमल ने वर्ष 2007 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद 18 महीने के कार्यकाल के बाद 2009 में तीन सीपीएस की नियुक्ति की थी।
- वर्ष 2006 में सीपीएस की नियुक्ति के लिए हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्ति, सुविधा व एमेनेटिज एक्ट बना था।