शिमला। हिमाचल प्रदेश में मुख्य संसदीय सचिवों (CPS) के पद से हटने के बाद उनकी कोठियां और कार्यालय खाली हो गए हैं, जिससे अब इन सुविधाओं पर सरकार के कैबिनेट रैंक के नेताओं और निगम-बोर्डों के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की नजरें हैं। प्रदेश सरकार ने हालांकि अभी तक इन कोठियों और कार्यालयों के आवंटन के संबंध में कोई आदेश जारी नहीं किया है, लेकिन नेता इन सुविधाओं को पाने के लिए अपनी जुगत भिड़ा रहे हैं।
कोठियों और फॉच्यूर्नर पर नजरें
पूर्व CPS की कोठियां अब खाली हो चुकी हैं, और कई नेता इन सरकारी आवासों पर अपना दावा करने के लिए सक्रिय हो गए हैं। इसके साथ ही, CPS से वापस ली गई 45 लाख रुपये की फॉच्यूर्नर कार के लिए भी तलबगार काफी है। हालांकि, राज्य सरकार ने इस महंगी गाड़ी को किसी भी अधिकारी या पदाधिकारी को देने का फैसला नहीं लिया है। सरकार ने इसे पूल में रखने का निर्णय लिया है ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसे मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री या अन्य VVIP के काफिले में इस्तेमाल किया जा सके।
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सरकारी आवासों के लिए जुगत भिड़ा रहे नेता
राज्य सरकार के निगम और बोर्डों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, जिनके पास अभी तक सरकारी आवास नहीं हैं, अब इन खाली कोठियों को पाने के लिए जुगत भिड़ा रहे हैं। बताया जा रहा है कि कुछ नेताओं को सचिवालय प्रशासन से पहले ही टाइप फाइव आवास आवंटित किए गए थे, लेकिन अब वे इन साधारण आवासों को छोड़कर बेहतर कोठियों के लिए प्रयास कर रहे हैं।
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इस बीच, आयुष मंत्री यादविंद्र गोमा अभी तक बिना सरकारी कोठी के हैं, हालांकि उन्हें सचिवालय प्रशासन से कोठी का आवंटन किया गया था, लेकिन यह कोठी फिलहाल किसी और के पास है। जानकारी के मुताबिक, 25 नवंबर को यह कोठी खाली हो जाएगी और ऐसे में आयुष मंत्री वहां शिफ्ट हो सकते हैं।
सचिवालय में कार्यालय की मांग
इसके अलावा, प्रदेश सरकार के निगम और बोर्डों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सचिवालय में अपने लिए कार्यालयों की मांग कर रहे हैं। इस बारे में सचिवालय के अधिकारियों को अवगत कराया जा रहा है, ताकि इन नेताओं को भी अपने कार्य के लिए उचित स्थान मिल सके। हालांकि, इस मामले में भी कोई औपचारिक आदेश या निर्णय अभी तक नहीं आया है।
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CPS के पदों से हटने के बाद खाली हुई कोठियों और कार्यालयों को लेकर राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। सरकार ने इन संसाधनों के आवंटन को लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिए हैं, लेकिन नेता और पदाधिकारी इन सुविधाओं के लिए अपनी चालें चल रहे हैं। अब देखना यह होगा कि सरकार किस तरह से इन संसाधनों का आवंटन करती है और क्या यह प्रक्रिया पारदर्शिता से पूरी होती है।