शिमला। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण आदेश में राज्य सरकार के 6 CPS को तत्काल प्रभाव से हटाने का निर्देश दिया है। यह फैसला लंबे समय से चल रहे CPS नियुक्तियों के विवाद को लेकर आया है, जिसमें कोर्ट ने इन नियुक्तियों को लेकर गंभीर सवाल उठाए थे।
इसके बाद राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में CPS के कर्मचारियों को उनके पदों से हटाने और उनके कार्यालय आवंटन को रद्द कर दिया है। जिसके बाद सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात सामने आई, वहीं, दूसरी ओर सरकार के मंत्री ने बयान दिया है कि सुप्रीम कोर्ट जाना सरकार के लिए अच्छा ऑप्शन नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट जाना अच्छा ऑप्शन नहीं
हाई कोर्ट के आदेश के बाद, राज्य सरकार के तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी ने अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में जब CPS नियुक्त किए गए थे, तो वे विधानसभा द्वारा पारित एक्ट के तहत बनाए गए थे। इसलिए ये ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के दायरे में नहीं आते हैं और इस कारण इनकी विधायकी सुरक्षित है।
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मंत्री धर्माणी ने स्पष्ट किया कि सरकार को हाई कोर्ट के आदेश को मानना पड़ेगा लेकिन उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाने को लेकर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि यह अच्छा ऑप्शन नहीं है, यह मेरी निजी राय है। इस मामले में सरकार को जो उचित लगे वही निर्णय लिया जाएगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट जाना एक सही फैसला नहीं होगा।
BJP इस विषय पर न ही बोले
BJP पर निशाना साधते हुए धर्माणी ने कहा कि BJP को इस मामले पर बोलने का हक नहीं है। पूर्व BJP सरकार में नॉमिनेटेड लोगों की संख्या मौजूदा सरकार से 10 गुना ज्यादा थी। राजेश धर्माणी ने यह भी कहा कि वर्तमान सरकार ने CPS के नॉमिनेशन को पारदर्शी तरीके से और कानूनी रूप से किया था और किसी भी प्रकार के अनुशासनहीनता या अवैधता को सख्ती से रोका गया था।
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सरकार ने बनाया है सुप्रीम कोर्ट जाने का मन
वहीं, दूसरी ओर हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की जानकारी हिमाचल सरकार के एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने दी है। एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने बताया कि सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल करने का निर्णय लिया है। प्रदेश की सुक्खू सरकार का मानना है कि हिमाचल हाईकोर्ट ने जिस असम के विमलांशु राय केस को देखते हुए फैसला सुनाया है, उससे हिमाचल का CPS एक्ट अलग है। जिसके चलते ही हिमाचल सरकार ने होईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला लिया है।
किसकी तर्ज पर सुनाया हाईकोर्ट ने फैसला
एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने बताया कि CPS मामले पर हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने असम के विमलांशु राय केस में सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट की तर्ज पर फैसला लिया है। हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने का फैसला लिया है और जल्द इस मामले की सुनवाई की अपील की जाएगी।
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सुक्खू सरकार ने बनाए थे छह सीपीएस
बता दें कि हिमाचल में कांग्रेस सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने छह विधायकों को CPS बनाया था। जिसमें रोहड़ू के विधायक एमएल ब्राक्टा, कुल्लू के सुंदर सिंह ठाकुर, अर्की के संजय अवस्थी, पालमपुर के आशीष बुटेल, दून के राम कुमार चौधरी और बैजनाथ के विधायक किशोरी लाल शामिल हैं। सुक्खू सरकार इन सभी सीपीएस को सरकारी गाड़ी, दफ्तर, स्टाफ और मंत्रियों के समान वेतन दे रही थी।
कांग्रेस सरकार में सीपीएस को कितने मिलते थे वेतन भत्ते
- CPS का मूल वेतन 65 हजार रुपए है। भत्ते मिलाकर ये वेतन 2.20 लाख रुपए प्रति महीना पहुंच जाता है।
- CPS को गाड़ी, स्टाफ अलग भी मुहैया करवाया जाता है।
- विधायकों और सीपीएस के वेतन में 10 हजार रुपए का अंतर है।
- विधायकों का वेतन और भत्ते प्रतिमाह 2.10 लाख रुपए है।
वीरभद्र-धूमल सरकार ने बनाए थे सीपीएस
- पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2013 में 10 CPS नियुक्त किए थे।
- प्रेम कुमार धूमल ने वर्ष 2007 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद 18 महीने के कार्यकाल के बाद 2009 में तीन CPS की नियुक्ति की थी।
- वर्ष 2006 में CPS की नियुक्ति के लिए हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्ति, सुविधा व एमेनेटिज एक्ट बना था।