शिमला। हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार के कुछ मंत्रियों ने कांग्रेस हाईकमान को एक बार फिर नाराज़ कर दिया है। इसके चलते लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह और पंचायती मंत्री अनिरुद्ध सिंह को कांग्रेस हाईकमान की ओर से फटकार का सामना करना पड़ा है। दोनों मंत्रियों को संवेदनशील मुद्दों पर सोच-समझकर बयान देने की हिदायत दी गई है, ताकि कांग्रेस पार्टी की भावनाओं का उचित ध्यान रखा जा सके।
बयानों से मच गई हलचल
कांग्रेस मंत्री विक्रमादित्य सिंह और अनिरुद्ध सिंह के बयानों ने हिमाचल की राजनीति में हलचल पैदा कर दी थी। दरअसल, यह मामला तब शुरू हुआ जब संजौली क्षेत्र में अवैध मस्जिद निर्माण को लेकर चर्चाएं तेज हुईं।
अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा के मॉनसून सत्र में बाहरी लोगों की बेतहाशा बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए यह सवाल उठाया कि क्या शिमला में रोहिंग्या मुसलमान आ रहे हैं। उनकी इस टिप्पणी के बाद अवैध मस्जिद विवाद और गरमाया नजर आया।
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मंत्री विक्रमादित्य का सोशल मीडिया पोस्ट
विक्रमादित्य सिंह ने भी स्ट्रीट वेंडर पालिसी को लेकर मीटिंग के बाद सोशल मीडिया पर कुछ स्क्रीनशॉट साझा किए, जिसमें उन्होंने यूपी सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'योगी मॉडल' का उल्लेख किया। इससे न केवल कांग्रेस के भीतर, बल्कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य में विवाद खड़ा हो गया। कांग्रेस के कई नेताओं ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुँचने का खतरा पैदा हो गया।
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आलाकमान का निर्देश
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने दोनों मंत्रियों को चेतावनी देते हुए कहा कि किसी भी पार्टी के मंत्री या पदाधिकारी को पार्टी के खिलाफ नहीं जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि राहुल गांधी की कोशिशें नफरत को खत्म करने की हैं और ऐसे बयानों से पार्टी की छवि को नुकसान पहुंच सकता है।
मंत्रियों का व्यक्तिगत बयान?
पार्टी के प्रवक्ता ने विक्रमादित्य के बयान को उनका व्यक्तिगत बयान बताया। मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले संजय अवस्थी ने भी इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जिम्मेदारियों के साथ सोचने की आवश्यकता होती है। वही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने भी इस मसले ओर बात करते हुए कहा था कि ऐसी कोई मंशा थी ही नहीं जैसा की बवाल खड़ा हो गया है। सरकार ने स्ट्रीट वेंडर पालिसी को लेकर कमेटी बने है जो इस मामले में फैसले लेगी।
राजनीतिक क्षति का डर
कांग्रेस के लिए यह स्थिति चिंता का विषय बन गई है। विशेषकर हरियाणा और जम्मू कश्मीर में चल रहे विधानसभा चुनावों के बीच। दोनों मंत्रियों के बयानों के चलते कांग्रेस को नुकसान होने की आशंका है, क्योंकि पहले यूपी में आई-कार्ड अनिवार्य किए जाने के फैसले का विरोध करने वाली कांग्रेस अब हिमाचल में वही नीति अपनाने की स्थिति में आ गई है।
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इन सभी के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या कांग्रेस पार्टी अपने मंत्रियों की बयानों के चलते अपने चुनावी समीकरणों को संभाल पाएगी? यदि ऐसे विवाद बढ़ते रहे तो यह न केवल पार्टी की छवि को धूमिल करेगा बल्कि चुनावी परिणामों पर भी असर डाल सकता है। हिमाचल प्रदेश की राजनीति में आने वाले समय में इन घटनाओं का गहरा प्रभाव पड़ सकता है जो पार्टी की रणनीतियों को नया मोड़ दे सकता है।
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