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May 29, 2025
सुक्खू सरकार ने उठाया सख्त कदम: जयराम Govt के समय पदोन्नत 20 अपात्र प्रोफेसर होंगे डिमोट
जयराम सरकार ने 20 अपात्र अधिकारियों को बनाया था एसोसिएट प्रोफेसर
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शिमला। हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार पूर्व की जयराम सरकार के समय में नियमों को ताक पर रख कर की गई पदोन्नति पर सख्त कदम उठाने जा रही है। पूर्व की जयराम सरकार ने साल 2020 में तकनीकी शिक्षा विभाग में 20 प्रोफेसरों को नियमों को दरकिनार कर उच्च पद पर बैठा दिया था। सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार अब हिमाचल के बहुतकनीकी कॉलेजों में नियुक्त उन 20 एसोसिएट प्रोफेसरों को डिमोट करने की तैयारी में है।
वर्ष 2020 में जयराम सरकार के समय इन अधिकारियों को एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत किया गया था, लेकिन हाल ही में सामने आई जांच रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि प्रमोशन की प्रक्रिया में न केवल नियमों की अनदेखी की गईए बल्कि शैक्षणिक अनुभव जैसी अनिवार्य शर्तों को भी नजरअंदाज किया गया। विभागीय सूत्रों के अनुसारए यह पदोन्नतियां पूरी तरह से नियमों के खिलाफ थीं।
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तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी ने इस मामले को गंभीर मानते हुए तकनीकी शिक्षा सचिव को 15 दिनों के भीतर जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई कर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। मंत्री ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में सुक्खू सरकार शून्य सहनशीलता की नीति पर काम कर रही है। मंत्री ने कहा कि हम पिछली सरकार की तरह आंख मूंदकर फैसले नहीं लेंगे। सरकारी धन और सिस्टम की विश्वसनीयता से खिलवाड़ नहीं होने देंगे।
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मंत्री राजेश धर्माणी ने कहा कि जिन अधिकारियों को पदोन्नति के बाद एसोसिएट प्रोफेसर बनाया गया, उन्हें पदोन्नति के साथ साथ उच्च वेतनमान भी दिया गया, जबकि वे पदोन्नति की पात्रता ही पूरी नहीं करते थे। जयराम सरकार के इस फैसले से प्रदेश के खजाने पर सालाना लगभग 25 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ा। यह मामला वर्तमान में कोर्ट में भी विचाराधीन है, लेकिन प्राथमिक जांच में ही आरोपों की पुष्टि हो गई है। ऐसे में नियमों को ताक पर रख कर प्रमोट किए गए प्रोफेसरों को डिमोट करने के साथ ही वेतन संबंधी समायोजन भी किया जाएगा।
सुक्खू सरकार इस फैसले के माध्यम से यह संदेश देना चाहती है कि पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में हुई गड़बड़ियों पर परदा नहीं डाला जाएगा और नियमों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई बख्शी नहीं जाएगी। यह कदम न केवल सरकारी धन के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में उठाया गया है, बल्कि सरकारी सेवा में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की नीति का हिस्सा भी है।