सिरमौर। देवभूमि हिमाचल के लोग अपने रीति-रिवाज और देवी-देवातओं से काफी जुड़े हुए हैं। देवभूमि के लोग हर साल अपने देवी-देवताओं के लिए विशेष पूजा का आयोजन करते हैं और पूरी श्रद्धा के साथ उनकी सेवा करते हैं। इसी कड़ी में हिमाचल प्रदेश के गिरिपार क्षेत्र में तीन गांव की बेटियों (धिन्टीयों) ने मिलकर एक अनोखी मिसाल पेश की है।
बेटियों ने पेश की मिसाल
गिरिपार क्षेत्र के मस्तभोज के तीन गावों की बेटियों ने उत्तराखंड और हिमाचल के ऐतिहासिक माशू स्थित परशुराम मंदिर में 11 लाख का सोने का छत्र चढ़ाया है। इस श्रद्धा भरे सहयोग से तीनों गांव के लोगों में गर्व और उत्साह का माहौल है।
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11 लाख का सोने का छत्र
ये छत्र माशू, दोऊ और ठाणा गांव की बेटियों ने मिलकर चढ़ाया है। इससे पहले दोऊ गांव की बेटियों ने सवा चार लाख का छत्र चढ़ाया था। माशू और ठाणा गांव की बेटिोयों ने 6 लाख और सवा लाख का छत्र चढ़ाया था।
बेटियों को किया सम्मानित
आपको बता दें कि बेटियों के सम्मान में माशू परशुराम मंदिर सेवा समिति ने बीते कल सामूहिक भोज का आयोजन किया था। इस सामूहिक भोज में माशू, दोऊ (उत्तराखंड) और ठाणा गांव से करीब दो हजार बेटियां शामिल हुई।
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इतिहास में पहली बार हुआ ऐसा
जानकारी देते हुए परशुराम मंदिर के बजीर अजब सिंह चौहान ने बताया कि ये क्षण एक ऐताहासिक क्षण था। इससे पहले मंदिर में आज तक कभी ऐसे समारोह का आयोजन नहीं हुआ है। इस आयोजन में शामिल होने वाली सभी महिलाओं को पीली कमीज और सफेद सलवार का विशेष ड्रेस कोड पहनकर आने को कहा गया था।
परशुराम मंदिर का इतिहास
पौरणानिक कथाओं के अनुसार, परशुराम मंदिर पहले उत्तराखंड के जौनसार बावस के दौऊ गांव में स्थित था। मगर यहां के कुछ लोग मांस और मदिरा का सेवन करने लगे- जिससे परशुराम नाराज हो गए और गांव में कई तरह की विघ्न-बाधाएं आने लगी। ये देखकर गांव के लोगों ने परशुराम के माली से इस बारे में बात की।
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मांस और मदिरा का त्याग
माली (देवलू) ने बताया कि ये सब परशुराम की नाराजगी के कारण हो रहा है। इस सबसे बचने के लिए आप लोगों को मांस और मदिरा के सेवन को त्यागना होगा। इसके बाद यहां के लोगों ने मांस और मदिरा का त्याग कर दिया और देवता को माशू लाने का प्रस्ताव रखा।
कब बाहर निकलती है पालकी?
जिसके चलते परशुराम को माशू लाकर अस्थाई रूप से यहां स्थापित किया गया। फिर यहां पर उनका एक भव्य मंदिर बनाया गया। बरसों से ऐसा हो रहा है कि ग्यास पर्व पर परशुराम की पालकी तभी बाहर निकलती है- जब दोऊ गांव के लोग माशू पहुंचते हैं।
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मान्यता है कि हर साल परशुराम अपनी माता रेणुका जी से मिलने आते हैं- जो हिमाचल के सिरमौर जिले में एक झील के रूप में विराजमान हैं। इस मिलन पर रेणुका में एक हफ्ते का भव्य मेला आयोजित किया जाता है। जिसमें हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।