#विविध

January 5, 2025

हिमाचल : भूंडा महायज्ञ में बेड़ा सूरत राम ने रस्सी के सहारे पार की घाटी, आज आखिरी दिन

शेयर करें:

शिमला। हिमाचल प्रदेश के जिला शिमला रोहड़ू के दलगांव में देवता बकरालू जी महाराज के मंदिर में आयोजित भूंडा महायज्ञ के दौरान शनिवार को बेड़े की रस्म पूरी हुई। इस दौरान 70 वर्षीय सूरत राम ने नौवीं बार मौत की घाटी पार की। रस्सी के सहारे यह रस्म निभाते हुए सूरत राम ने एक बार फिर श्रद्धालुओं का दिल छू लिया। हालांकि, शुरुआत में रस्सी टूटने से कुछ समय के लिए व्यवधान आया, लेकिन मंदिर कमेटी ने दूरी को कम करके रस्म को पूरा किया।

बेड़े की रस्म के दौरान दिखा ऐसा दृश्य

बेड़ा सूरत राम जैसे ही रस्सी के सहारे दूसरी ओर जाने लगे, तो उनका बेड़ा बीच में फंस गया। यह स्थिति लगभग 4-5 मिनट तक रही, लेकिन अंततः रस्सी के सहारे बेड़ा खींचकर रस्म पूरी की गई। इस दौरान पूरे क्षेत्र में देव जयकारे, ढोल-नगाड़ों की ध्वनि और नाटियों के गीत गूंजते रहे। एक अनुमान के अनुसार इस अद्भुत आयोजन में करीब 1.5 लाख से अधिक श्रद्धालु साक्षी बने। यह भी पढ़ें : हिमाचल में बंद हुई बिजली सब्सिडी- फरवरी में आएगा पूरा बिल, यहां जानिए डिटेल

दिव्य रस्सी को 300 लोगों ने कंधे पर उठाया

बेड़े की रस्म को पूरा करने के लिए दिव्य रस्सी को रात भर पानी में भिगोने के बाद सुबह 300 से अधिक लोग कंधों पर उठाकर आयोजन स्थल तक ले आए। इन लोगों ने रस्सी को नाले के दोनों ओर बांधकर रस्म की शुरुआत की। इस आयोजन को देखकर भूंडा महायज्ञ में एक महाकुंभ जैसा माहौल बन गया। मगर, बीच में रस्सी टूट गई और माहौल ठंडा हो गया। यह भी पढ़ें : हिमाचल में सर्द मौसम में भी गर्मी का एहसास, आज बदलेगा मौसम- बर्फबारी की संभावना

सूरत राम की 40 साल पुरानी यादें

स्पैल वैली में यह सूरत राम का दूसरी बार बेड़े की रस्म निभाने का अवसर था। 40 वर्ष पूर्व, 1985 में जब वह 25 साल के थे, तब भी उन्होंने बकरालू जी महाराज के मंदिर में भूंडा यज्ञ में बेड़े की रस्म निभाई थी। अब तक वह प्रदेशभर में 9 बार इस रस्म को निभा चुके हैं। उनका कहना है कि यह उनका सौभाग्य है कि वह देवता के इस महत्वपूर्ण यज्ञ का हिस्सा बन पाते हैं। यह भी पढ़ें : हिमाचल : अवैध खेती करने से रोका तो पीट डाला स्थानीय व्यक्ति, पत्नी पहुंची थाने

आज भूंडा महायज्ञ का आखिरी दिन

भूंडा महायज्ञ में सूरत राम की भूमिका और इस दौरान हुई चमत्कारी घटनाओं ने क्षेत्र में एक अद्भुत धार्मिक वातावरण उत्पन्न किया। इस आयोजन को देखकर स्थानीय लोग और श्रद्धालु यह मानते हैं कि यह महायज्ञ आस्था और श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है। बता दें कि आज भूंडा का आखिरी दिन है, इसके बाद देव श्रद्धालु अपने घर को लौट जाएंगे।

पेज पर वापस जाने के लिए यहां क्लिक करें

ट्रेंडिंग न्यूज़
LAUGH CLUB
संबंधित आलेख