कुल्लू। देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल में कण कण में देवी देवताओं का वास है। यहां लोग बिना अपने अराध्य देव की मर्जी के कोई काम नहीं करते। शादी ब्याह हो या अन्य धार्मिक कार्य सब देवताओं की मर्जी से ही होता है। यहां तक कि खेत में फसलों की बुआई की शुरूआत भी देवताओं के आशीर्वाद के बाद होती है।
ऐसा ही देवमयी नजारा कुल्लू जिला में मानसून सीजन शुरू होने के बाद धान की रोपाई के दौरान देखने को मिलता है। यहां धान की रोपाई के लिए खुद देवता खेत में पहुंचते हैं और उनके आशीर्वाद के बाद महिलाएं धान की रोपाई का काम शुरू करती हैं।
कुल्लू की सैंज घाटी में है परंपरा
यह परंपरा कुल्लू जिला की सैंज घाटी में प्रचलित है, यहां फसल की रोपाई से पहले अच्छी फसल के लिए देवी देवताओं से आज्ञा और आशीर्वाद लिया जाता है। ग्रामीण ना सिर्फ खेतों में देवी देवताओं का आह्वान करते हैं, बल्कि उनकी मौजूदगी में ही धान की रोपाई शुरू करते हैं और खेतों में ही कुल्लवी नाटी भी डालते हैं।
यह भी पढ़ें: पिता के साथ जा रहा था 28 साल का बेटा, रास्ते में खा लिया ज.हर, पसरा मातम
खेत में आते हैं देवता, महिलाएं आशीर्वाद लेकर करती हैं धान की रोपाई
घाटी में धान की रोपाई से पहले ग्रामीण सबसे पहले अपने अपने देवी देवताओं का आशीर्वाद मांगते हैं। यहां महिलाएं धान की रोपाई के लिए पानी से भरे हुए खेत में खडी होती हैं और गांव के पुरुष ढोल नगाड़ों की थाप के साथ देवताओं को खेतों तक लाते हैं।
यह भी पढ़ें: महिलाओं को दिए 1500 रुपए वापस ले रहे: सुक्खू सरकार पर ठगी का आरोप
उसके बाद महिलाएं देवता की पूजा अर्चना करती हैं और उनसे अच्छी फसल का आशीर्वाद मांगती हैं। वहीं ऐसा भी मानना है कि धान की रोपाई के दौरान देवता खेतों में ही मौजूद रहकर अपनी देखरेख में कार्य संपन्न करवाते हैं। धान की रोपाई के बाद ग्रामीण आपस में कीचड में खेलते हैं और देवता के साथ कुल्लुवी नाटी भी डालते हैं।
जानें क्या है परंपरा के पीछे की कहानी
सैंज घाटी के ग्रामीण हरिराम चौधरी, मुकेश कुमार, झाबे राम, बुद्धि सिंह का इस विषय पर कहना है कि बहुत पहले के समय से इस घाटी में पानी कि खूब समस्या है। ग्रामीण किसी तरह धान की रोपाई के लिए नालों का पानी अपने खेतों में एकत्र करते थे।
ऐसे में देवता को खेतों तक लाया जाता था और सारा वृतांत बताया जाता था कि बहुत कठिनाई से नालों का पानी खेतों तक लाया गया है। ऐसे में ग्रामीणों की मेहनत बर्बाद ना हो इसीलिए देवता उनपर आशीर्वाद बनाए रखें, ताकि फसल बेहतर हो सके।
धार्मिक मान्यता को आज भी मानते हैं ग्रामीण
हालांकि अब घाटी में कोई समस्या नहीं हैए लेकिन फिर भी धार्मिक मान्याता के अनुसार घाटी में बसने वाले ग्रामीण इस परंपरा का पालन करते हैं।आज भी पहले देवता को खेत में लाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं फिर उन्ही के सामने धान रोपते हैं, ताकि उनकी फसल पर कोई नुकसान ना हो।