शिमला: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला जन आंदोलनों की भूमि रही है, इस कथनी को साबित करता एक आंदोलन शिमला में आज भी हुआ। संजौली में बनी अवैध मस्जिद को गिराने की मांग को लेकर हिन्दू पक्ष का पुलिस प्रशासन से सीधा टकराव हुआ, जिसकी चर्चा आज हर तरफ है।
आप पाठकों को बता दें कि राजधानी शिमला में पूरे 7 सालों के बाद इस तरह का कोई जन आन्दोलन खड़ा हुआ है। इस तरह का व्यापक जन आन्दोलन पिछली बार कोटखाई से सामने आए गुड़िया हत्याकांड मामले को लेकर हुआ था। तो फिर अब तक कैसा रहा है, पहाड़ों की रानी शिमला में जन आंदोलनों का इतिहास। आज इसी विषय पर एक पैनी नजर डालते हैं।
शांता कुमार की सरकार में चली थीं बागवानों पर गोलियां
22 जुलाई 1990 को शिमला के ऊपरी पहाड़ी क्षेत्रों के बागवानों ने मिलकर एक ऐसे आंदोलन को धार दी थी उस वक्त की मौजूदा शांता कुमार सरकार को हिमाचल में पहली बार प्रदेश के बाहर से पुलिस फ़ोर्स बुलवानी पड़ गई थी। बागवानों ने यह आंदोलन सेब के न्यूनतम समर्थन मूल्य की बढ़ोतरी को लेकर किया था। उस समय सरकार ने सेब का न्यूनतम समर्थन मूल्य में पच्चीस पैसे प्रति किलो की बढ़ोतरी की थी, लेकिन बागवान चाहते थे की सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य 1 रुपए तक बढ़ाए।
तीसरी बार मुख्यमंत्री नहीं बन सके शांता कुमार
इस आंदोलन में शिमला के सरकारी कर्मचारी भी शामिल हुए थे। प्रदर्शनकारियों की बढ़ती संख्या देख पुलिस बल घबरा गया और बौखलाहट में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दी थी। इस गोलीकांड में 3 बागवानों की मृत्यु हुई थी, जबकि कई लोग घायल हुए थे। बाद में इस गोलीकांड के कारण जनता के बीच पनपे रोष के चलते शांता कुमार तीसरी बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन सके।
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कोटखाई कांड से जल उठा था शिमला
इसी तरह आज से 7 वर्ष पहले यानी साल 2017 में शिमला के कोटखाई क्षेत्र में घटित हुई अमानवीय घटना के कारण पूरी देवभूमि का सिर शर्म से झुक गया था। 4 जुलाई को कोटखाई के महासू से दसवीं कक्षा की छात्रा गुड़िया लापता हुई, फिर तलाश करने पर 2 दिन के बाद गुड़िया का शव दांदी के जंगल में नग्न अवस्था में मिला।
पुलिस कस्टडी में हुई थी आरोपी की मौत
पोस्टमार्टम हुआ तो रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि हुई। जांच आगे बढ़ी पुलिस ने 55 घंटे के भीतर मामला सुलझाने का दावा किया, 5 आरोपी गिरफ्तार हुए। लेकिन जनता आनन-फानन में की गई इस जांच से संतुष्ट नहीं थी। इसके बाद मामले में एक आरोपी की पुलिस कस्टडी में मौत हो जाने और एक बड़े राजनेता के परिवार का नाम आने से जनता भड़क उठी थी।
फूंक दिया गया था कोटखाई थाना
इसके बाद शिमला के कोटखाई में हुए एक उग्र प्रदर्शन के दौरान कोटखाई थाना तक फूंक दिया गया था। थाने के बाहर खड़ी कई गाड़ियां पलटकर दस्तावेजों में आग लगा दी गई थी। उस वक्त भीड़ के पथराव के आगे पुलिस बल कमजोर साबित हुआ और एसएचओ समेत कई जवानों को अस्पताल में भी भर्ती करवाना पड़ा था।
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इसके बाद विधानसभा के चुनावों में भी वीरभद्र सिंह की सरकार को गुड़िया मामले के चलते ही गहरा डेंट लगा था और कहीं ना कहीं इसी जन आन्दोलन ने सत्ता परिवर्तन की नींव तैयार की थी।
जब शिमला वासियों ने पिया लाश वाला पानी
इसी तरह शिमला जिले से ही सामने आए युग हत्याकांड को लेकर भी इन्साफ पाने के लिए स्थानीय लोगों और छात्र संगठनों ने एक ऐसे जन आन्दोलन की नींव तैयार की थी, जिससे यह मामला पूरे देश में हाईलाईट हो गया था। मामले में 4 साल युग नामक मासूम को उसके पड़ोसियों ने ही किडनैप कर टॉर्चर किया था।
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परिवार से फिरौती की मांग की गई थी। मगर जब दोषियों को जब लगा की फिरौती नहीं मिलेगी, तो मासूम को बेहोशी की हालत में पत्थर से बांध कर जिंदा ही भराड़ी में स्थित नगर निगम के क्लस्टन टैंक में फ़ेंक दिया गया था।
कई अफसरों व नेताओं को भी सप्लाई हुआ था लाश वाला पानी
इसके बाद पूरे शिमला भर के लोगों ने काफी दिनों तक उसी लाश वाले टैंक का पानी पिया और साथ ही कई अफसरों और नेताओं के यहां भी उसी लाश वाले पानी की सप्लाई होती रही। मगर जब टैंक से युग की लाश बरामद हुई, तब जाकर लोगों को इस बात का पता चला था।
इसके बाद मामले को लेकर हुए प्रदर्शन में सैकड़ों की संख्या में लोगों ने एकत्रित होकर रिज़ मैदान पर मौजूद महात्मा गांधी की प्रतिमा के आगे मोमबती जलाकर इंसाफ की गुहार लगाई थी।