नई दिल्ली। देवभूमि कहलाए जाने वाले छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की हर बात निराली है। हिमाचल के हर गांव व शहर में एक ना एक अनोखी प्रथा देखने को मिलती है। जहां एक तरफ दुनिया भर में शादी से जुड़ी अनेकों परंपराएं हैं। वहीं, हिमाचल प्रदेश में कई जगहों पर वैवाहकि परंपराएं कुछ अलग अंदाज में निभाई जाती हैं।
निभाई जाती हैं अनोखी परंपराएं
आज हम आपको ऐसी ही एक अनोखी परंपरा के बारे में बताएंगे। जिसके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे। हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिला की शादी की परंपरा की।
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आम शादियों से होती हैं अलग
दरअसल, यहां की शादियां आम शादियों से बिल्कुल अलग होती हैं। इन शादियों में बहुत ही अद्भुत परंपरा निभाई जाती है। किन्नौर में शादी को रानेकांग कहा जाता है।
नहीं लिए जाते हैं सात फेरे
किन्नौर में शादी के दौरान ना ही दो परिवारों की सहमति नहीं ली जाती है और ना ही सात फेरे लिए जाते हैं। यहां हर फैसला देवी-देवताओं की मर्जी के साथ लिया जाता है। यानी देवी-देवताओं की मर्जी की बाद ही हर शादी की तारीख फिक्स की जाती है।
दूल्हे का साथी भी होता है तैयार
शादी की तारीख निकलने के बाद भव्य तरीके से देवता को घर पर बुलाया जाता है। देवता के आदेश के बाद ही सभी काम पारंपरिक तरीके से किए जाते हैं। इसके बाद बारात को दुल्हन के घर जाने के लिए कहा जाता है। हालांकि, बारात में सिर्फ दूल्हे को ही नहीं उसके एक साथी को भी दूल्हे की तरह ही वेशभूषा पहना कर तैयार किया जाता है।
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शराब के साथ होता है स्वागत
वहीं, दुल्हन के घर जाते समय रास्ते में नदी-नालों के पास पुजारी बुरी शक्तियों को भगाने की कोशिश करते हैं। इसके बाद जैसे ही बारात दुल्हन के घर पहुंचती है तो महिलाएं अंगूरी शराब के साथ दूल्हे का स्वागत करती हैं। साथ ही सभी बारातियों को सूखे मेवों की मालाएं पहनाई जाती हैं।
पूजा की थाली में रखी जाती है शराब
कहा जाता है कि यहां थाली में धूप के साथ अंगूरी शराब को रखना शुभ माना जाता है। ऐसा ना करने से शादी की परंपरा अधूरी रह जाती है। विदाई के समय दुल्हन की ओर के परिवार के बड़े लोग अंगूरी शराब लेकर आते हैं और दूल्हे के साथ आए लोगों को भेंट कर देते हैं। इसके बाद दुल्हन की बारात के साथ विदाई कर दी जाती है। इस तरह यहां इस अनोखी परंपरा के साथ विवाह संपन्न हो जाता है।