मंडी। हिमाचल प्रदेश को देवों की भूमि कहा जाता है। देवभूमि हिमाचल में कई छोटे-बड़े मंदिर मौजूद है। हर मंदिर का अपना एक अलग इतिहास है। आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के एक ऐसे अनूठे मंदिर के बारे में बताएंगे- जिसके बारे में जानकर आप भी दंग रह जाएंगे।
स्नान से चर्म रोग होते हैं दूर
हम बात कर रहे हैं मंडी जिला के सुकेत रियासत में बसे सूरजकुंड मंदिर की। इस मंदिर का इतिहास अपने आप में अनूठा है। यहां सूर्य स्नान के अभिमंत्रित जल का अभिषेक करने से चर्म रोग दूर होते थे।
कहा जाता है कि जीत सेन की मृत्यु के बाद गुरुर सेन को नरसिंह मंदिर में राजगद्दी पर बिठाया। उसके बाद जब गुरुर सेन कुल्लू से कांगड़ा होकर सुकेत लौट रहे थे तो उन्होंने हीमली के राणा की बेटी से शादी की। साथ ही करतारपुर से अपनी राजधानी को वनडे ले आए।
राजमहल के पास बनवाया मंदिर
इसके बाद राजा ने अपने राजमहल के पास भेछनी धार की तलहटी में बनोण नाले के पास महाराजा गुरुसेन की रानी पन्छमु देई ने सूरजकुंड मंदिर का निर्माण किया। पन्छमु देई सेन वंश की सबसे धार्मिक और विद्वान स्त्री थी। उन्होंने अष्टधातु की सूर्य की मूर्ति की स्थापना प्राकृतिक जल स्त्रोत के ऊपर चतरोखड़ी नामक स्थान पर की और सामने एक जलकुंड का निर्माण किया।
चमत्कारी बर्तन में होती है यंत्र पूजा
इस जलकुंड में मूर्ति के नीचे से जल धारा प्रवाहित होकर गिरती थी। मंदिर में मौजूद चमत्कारी बर्तन में सूर्य नारायण भगवान की यंत्र पूजा के साथ अष्टधातु की मूर्ति को स्नान करवाया जाता है। मान्यता है कि सूर्य स्नान के अभिमंत्रित जल का अभिषेक करने से चर्म रोग दूर होते थे।
बच्चों को बीमारियों से मुक्ति
कहा जाता है कि स्नान के समय इस बर्तन से किरणें निकलती थी। स्नान के बाद बचे हुए जल को अभिमंत्रित कर रोगियों को दिया जाता था। इस जल को ग्रहण करने के बाद नेत्र रोग, चर्म रोग और बच्चों को बीमारियों से मुक्ति मिलती थी।
दैवीय शक्तियों का था भंडार
कहा जाता है कि पंछमु देई सूर्य की उपासक थी। सूर्य की उपासना से उनके पास दैवीय शक्तियों का भंडार था। पन्छमु देई प्रतिदिन सूर्य की पूजा के लिए सूरजकुंड मंदिर में जाया करती थी। सूर्य यंत्र से पन्छमु देई बच्चों को झाड़ा नेत्र रोग व निसंतान पति-पत्नी को संतान प्राप्ति के लिए जल अभिमंत्रित करके देती थी।