दिल्ली। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने के प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट में मंजूरी मिल गई है। 'वन नेशन-वन इलेक्शन' की यह रिपोर्ट पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति ने मार्च माह में ही सौंप दी थी, जिसमें सभी चुनावों को एक साथ करवाने की संभावनाओं को खोजा गया था।
100 दिन में हो सभी चुनाव
इस कमेटी ने सिफारिश की थी कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ 100 दिन के अंदर करवाए जाने चाहिए। बता दें कि इस समय भारत में अलग-अलग समय अवधि में चुनाव होते हैं। 'वन नेशन-वन इलेक्शन' आने के बाद पूरे देश में एक निश्चित समयावधि में सभी स्तर के चुनाव होंगे।
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18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट
बता दें कि एक देश एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को अपनी 18 हजार 626 पेज की रिपोर्ट सौंपी थी। बता दें कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में वन नेशन वन इलेक्शन के संकल्प के बारे में बात की थी, जिसके बाद कयास लगाए जा रहे थे कि जल्द ही बड़ा फैसला इसके पक्ष में आएगा।
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15 पार्टियों ने किया था विरोध
बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई बनी समिति ने 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया था. इनमें से 32 ने एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया था. जबकि, 15 पार्टियां इसके विरोध में थीं। इसके बावजूद आद मोदी केबिनेट में इस अहम मुद्दे पर मुहर लग चुकी है।
पीएम मोदी ने किया था जिक्र
बीते 15 अगस्त को पीएम नरेंद्र मोदी ने लाल किले से दिए गए भाषण में वन नेशन-वन इलेक्शन का जिक्र किया था। उनका मानना था कि बार-बार हो रहे चुनावों से देश का समय खरब होता है और देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।
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"वन नेशन, वन इलेक्शन" का मतलब है कि भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक ही समय पर आयोजित किए जाएं। इसके कई फायदे हैं:
लागत में कमी: चुनाव एक साथ होने से खर्चे में कमी आएगी। सुरक्षा, प्रशासन और चुनावी सामग्री पर होने वाला खर्च कम होगा।
प्रशासनिक दक्षता: एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक तंत्र पर कम दबाव पड़ेगा। चुनावी तैयारियों के लिए एक ही बार में संसाधनों का उपयोग होगा।
मतदाता की भागीदारी: जब चुनाव एक साथ होते हैं, तो मतदाता की भागीदारी बढ़ सकती है, क्योंकि लोग चुनावों को एक महत्वपूर्ण अवसर मानेंगे।
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राजनीतिक स्थिरता: एक ही समय पर चुनाव कराने से सरकारों को अधिक समय मिलता है। इससे राजनीतिक स्थिरता और विकासात्मक योजनाओं को लागू करने में आसानी होती है।
कम प्रचार गतिविधियां: बार-बार चुनाव प्रचार से लोगों को राहत मिलेगी, जिससे वे राजनीतिक गतिविधियों से अधिक प्रभावित नहीं होंगे।
निर्णय लेने में तेज़ी: सरकारें चुनावी मुद्दों पर जल्दी निर्णय ले सकती हैं, क्योंकि उन्हें अगले चुनावों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
हालांकि, इसके साथ ही कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसे कि विभिन्न राज्यों की चुनावी जरूरतों का ध्यान रखना और मतदाता की असमानता। लेकिन अगर सही ढंग से लागू किया जाए, तो यह प्रणाली कई सकारात्मक बदलाव ला सकती है।