शिमला। हिमाचल प्रदेश अपनी खूबसूरत वादियों, बड़े-बड़े पहाड़ों और सुंदरता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। इसके अलावा हिमाचल की परंपरा, संस्कृति, पहनावा और खानपान भी लोगों को अपनी ओर काफी आकर्षित करता है। आज हम अपने इस लेख में हिमाचल की एक ऐसी चीज के बारे में बताएंगे- जिसके बारे में शायद कुछ लोग जानते भी नहीं होंगे।
घरों से लुप्त हुआ पेडू
दरअसल, बदलते समय के साथ बहुत सारी चीजों में बदलाव हो रहा है। लोग अपने घरों से पुरानी चीजों को हटा कर नई चीजें रख रहे हैं। ऐसे में कुछ चीजों के बारे में नई पीढ़ी जान भी नहीं पा रही है कि उनका इस्तेमाल क्या था और वो घर में क्यों रखी जाती थीं।
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पारंपरिक घरों का अहम हिस्सा पेडू
आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक घरों में एक महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करता था पेडू। मगर आज के बदलते समय और जीवनशैली के कारण धीरे-धीरे गायब हो रहा है।
बांस के इस बर्तन को लेकर यहां आज भी कई कहावतें आज भी जिंदा है। मगर इस बर्तन का खुद का वजूद खतरे में है। साथ ही उन समुदाय की आर्थिकी पर संकट है- जो पीढ़ी दर पीढ़ी हाथ के हुनर से बांस के बर्तन बनाता आ रहा है।
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कैसा दिखता है पेडू?
पेडू देखने में बेलनाकार होता है। बांस का यह बर्तन काफी मजबूत होता है और इसे कई वर्षों तक इस्तेमाल में लाया जाता है। इसका मध्य हिस्सा हल्का सा बाहर की तरफ फूला हुआ होता है।
इस बर्तन की भी कई किस्में होती हैं। सबसे छोटे रूप के पेडू को भुरकली कहते हैं। इसमें दो लाख दाना अनाज आता है। भुरकली के बाद 5 लाख, 10 लाख, 15 लाख और 20 लाख क्षमता वाले बांस के बर्तन होते हैं। 20 लाख की क्षमता वाले बर्तन को खार का पेडू कहा जाता है। अब पेडू कुछ एक घरों में देखने को मिलता है।
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गोबार से लीपते हैं पेडू
बांस के इस बर्तन को गाय के गोबर से अंदर और बाहर दोनों तरफ से लीपा जाता है- ताकि बांस की बुनाई के बाद बचे हुए छेद पूरी तरह से ढक जाएं। पेडू की लिपाई साल में एक बार या फिर नई फसल पर या उस वक्त की जाती है।
कहां आता है इस्तेमाल?
कभी पेडू हर घर के किसी हिस्से में रखा दिखता था, लेकिन अब ये लुप्त हो रही वस्तुओं में शामिल हो चुका है। यह बांस से बुना गया एक ड्रमनुमा कंटेनर होता था, जिसमें किसान खेतों से निकाले गए अनाज को संग्रहित करके रखता था।
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कितनी होती है पेडू की कीमत?
आपको बता दें कि एक पेडू को बनाने में 2 से 3 दिन का समय लग जाता है। इसकी कीमत आकार के हिसाब से तय की जाती है। वर्तमान में पेडू की कीमत 500 रुपए से 1500 रुपए तक है। पहले बहुत संख्या में इस बर्तन को बनाने का काम होता था। मगर अब इसको बहुत कम लोग खरीदते हैं।
पेडू से जुड़ी रोचक कहानी
कहते हैं भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान जब चारों ओर मारकाट का दौर चला हुआ था। उस वक्त बहुत से लोगों ने इन पेडूओं के अंदर छुपकर अपनी जान बचाई थी। पेडू उस समय में राशन बचाने के अलावा छिपने के काम भी आता था।
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क्या आपने देखा है पेडू?
उल्लेखनीय है कि आज के मॉर्डन युग में बहुत सारी चीजें लुप्त हो गई हैं। आज पेडू पहाड़ों में बहुत कम घरों में देखने को मिलते हैं। पेडू की जगह पर लोग आजकल शीट या फिर प्लास्टिक के कंटनेरों का इस्तेमाल कर रहे हैं।