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March 19, 2024

हिमाचल कांग्रेस से एक और बड़ा इस्तीफ़ा: पूर्व मंत्री के बेटे नाराज- सरकार पर आरोप

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धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की मुश्किलें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। पहले कांग्रेस के छह विधायकों के बागी होने और फिर एक मंत्री के अपने पद से त्यागपत्र देने के बाद हिमाचल कांग्रेस की नींद ही उड़ गई और प्रदेश में तख्ता पलट की स्थिति बन गई। हालांकि, केंद्र से आई पर्यवेक्षकों की टीम ने हिमाचल कांग्रेस की डूबती नैया को संभाला, लेकिन अब एक बार फिर कांग्रेस में उसी तरह की उथल पुथल दिखनी शुरू हो गई है।

सुक्खू सरकार पर लगाए गंभीर आरोप

हिमाचल कांग्रेस के एक नेता ने अपने पद से त्याग पत्र देकर राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर भूचाल ला दिया है। इस नेता ने त्याग पत्र के साथ ही सुक्खू सरकार पर अपने वर्ग की अनदेखी के गंभीर आरोप लगाए हैं। लोकसभा चुनाव के बीच इस तरह से इस बड़े नेता के त्यागपत्र ने एक बार फिर हिमाचल कांग्रेस की जड़ों को हिलाने का काम कर दिया है।

विक्रम चौधरी ने अपने पद से दिया इस्तीफा

दरअसल हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ओबीसी विभाग के अध्यक्ष विक्रम चौधरी ने अपने पद से इस्तीफा दिया है। उन्होंने अपने इस्तीफ का कारण सुक्खू सरकार में ओबीसी वर्ग की मांगों की अनदेखी बताया है। विक्रम चौधरी ने बताया कि सुक्खू सरकार ने ओबीसी आयोग और ओबीसी वित्त निगम में चेयरमैन के पदों को अभी तक नहीं भरा है।

डेढ़ साल में कुछ नहीं कर पाए सीएम सुक्खू

पूर्व मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रह चुके चौधरी सरवण कुमार के पुत्र विक्रम चौधरी ने आरोप लगाया है हिमाचल में जब दिसंबर 2022 में कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई और सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री बने तो उन्हें पूरा यकीन था कि ओबीसी के हितों को ध्यान में रखा जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार को बने डेढ़ साल से अधिक का समय हो चुका है, और पार्टी की ओर से ओबीसी के मुद्दों को हल करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया है।

418 सीटों में आठ सदस्यों को दी जगह

विक्रम चौधरी के अनुसार प्रदेश में कुल 418 पीसीसी, डीसीसी और बीसीसी सदस्यों में से केवल आठ ओबीसी सदस्यों को ही जगह दी गई है। इसके अलावा ओबीसी प्रमाणपत्र की वैधता, उच्च शिक्षा में 18 प्रतिशत आरक्षण के अलावा सरकार में प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों, एचपीपीएससी और अधीनस्थ में ओबीसी सदस्यों की नियुक्ति में 18 प्रतिशत आरक्षण के कार्यान्वयन की मांग को भी अनदेखा किया जा रहा है।
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