सोलन। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ट्रांसेडर से जुड़े मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ये स्पष्ट किया है कि कोई भी ट्रांसजेंडर BNS की धारा 69 का इस्तेमाल नहीं कर सकता है। यानी कोई भी ट्रांसजेडर शादी के झूठे वादे पर यौन संबंध बनाने के मामले में इस धारा का इस्तेमाल नहीं कर सकता है।
ट्रांसजेंडर नहीं कर सकता BNS की धारा 69 का इस्तेमाल
धारा 69 के वास्तविक अधिदेश की व्याख्या करते हुए और आरोपी की अंतरिम जमानत की पुष्टि करते हुए जस्टिस संदीप शर्मा ने कहा कि BNS के तहत महिला और ट्रांसजेंडर को अलग-अलग पहचान दी गई है। धारा 2 के तहत उन्हें स्वतंत्र रूप से परिभाषित किया गया है।
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अधिनियम की धारा 18 (D) है काम की
उन्होंने कहा कि अगर पीड़ित अभियोक्ता और जमानत याचिकाकर्ता के बीच शारीरिक संबंध हो, जो कि पीड़ित अभियोक्ता की सर्जरी से पहले विकसित हुआ था और जिसके तहत उसने कथित तौर पर अपना जेंडर चेंज करवाया हो। ऐसे में BNS की धारा 69 के तहत कोई मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। इस मामले में अधिनियम की धारा 18 (D) के तहत निपटा जाना चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला 18 जुलाई, 2024 को जिला सोलन के बद्दी में महिला पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR से सामने आया है। पीड़िता ट्रांसजेंडर महिला ने आरोप लगाया कि वह लॉकडॉउन में फेसबुक के माध्यम से भूपेश ठाकुर नाम के एक आदमी से मिली थी। उसने शुरू में ही भूपेश को बता दिया था कि वो एक ट्रांसजेंडर है।
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लॉकडॉउन में परवान चढ़ा प्यार
इसके बावजूद भूपेश ने लगातार उससे शादी करने का वादा करता रहा। फिर जब लॉकडॉउन खत्म हुआ तो दोनों एक साथ यात्रा करने लगे। ट्रांसजेंडर ने बताया कि भूपेश ने उसके माथे पर सिंदूर भी लगाया। मगर बाद में उसने उससे शादी करने से इंकार कर दिया।
दिल्ली AIIMS में करवाई जेंडर परिवर्तन सर्जरी
इसके बाद उसके परिवार ने जोर देकर कहा कि वे जेंडर परिवर्तन सर्जरी करवा ले। इस पर पीड़िता ने AIIMS दिल्ली में सर्जरी करवाई। इसके बाद उसे पता चला कि भूपेश के परिवरा ने उसकी शादी कहीं और तय कर दी है। जिसके चलते पीड़िता ने थाने में शिकायत दर्ज करवाई।
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मामला कोर्ट पहुंचा तो याचिकाकर्ता ने BNS की धारा 69 और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 18 (D) के तहत FIR दर्ज होने के बाद जमानत मांगी। इस पर भूपेश को पहले 14 अगस्त, 2024 को अंतरिम जमानत दी गई, जिसकी अब पुष्टि होनी है।
वकील ने क्या दिया तर्क?
वहीं, याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि BNS की धारा 69 के तहत मामला लागू नहीं था। उन्होंने तर्क दिया कि धारा 69 केवल उन मामलों पर लागू होती है, जहां महिला को शादी के झूठे वादे से धोखा दिया जाता है। जैसा कि अभियोक्ता ने अपने बयानों में ट्रांसजेंडर होने की बात स्वीकार की है। इससे से ये सप्ष्ट होता है कि वह कानून के तहत महिला के रूप में योग्य नहीं है। साथ ही इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई मेडिकल साक्ष्य नहीं था कि पीड़िता ने जेंडर परिवर्तन सर्जरी करवाई थी।
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सच्चाई जानते हुए किया शोषण
इस पर एडिशनल एडवोकेट जनरल राजन कहोल द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए राज्य ने जवाब दिया कि ये सबूत काफी है कि भूपेश पीड़िता की ट्रांसजेंडर पहचान जानने के बावजूद उसका शोषण कर रहा था। उन्होंने तर्क दिया कि अपराध की गंभीरता और पीड़ित को हुई भावनात्मक और शारीरिक क्षति को देखते हुए याचिकाकर्ता को रियायत नहीं दी जानी चाहिए।
वहीं, जब BNS की धारा 69 और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों की जांच की गई तो पाया गया कि धारा 69 विशेष रूप से महिला से की गई शादी के धोखे भरे वादों को दंडित करती है। इसे BNS की धारा 2(35) के तहत किसी भी उम्र की महिला मानव के रूप में परिभाषित किया गया है।
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अलग श्रेणी में आते हैं ट्रांसजेंडर
मामले में खुद अभियोक्ता ने खुद को ट्रांसजेंडर के रूप में पहचाना था। ऐसे में न्यायालय ने याचिकाकर्ता के तर्क में योग्यता पाई कि इस मामले में धारा 69 को लागू नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा न्यायालय ने BNS की धारा 2(10) का भी हवाला दिया- जो जेंडर को परिभाषित करते हुए पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडरों को शामिल करता है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अलग श्रेणी के रूप में पहचाना जाता है ना कि पुरुष या महिला के रूप में।
न्यायालय ने धारा 18(D) की समीक्षा करते हुए कहा कि इस धारा में अधिकतम दो साल की सजा का प्रावधान है। दरअसल, धारा 18(D) ट्रांसजेंडर व्यक्ति के जीवन सुरक्षा या कल्याण को नुकसान पहुंचाने या घायल करने वाले कार्यों को दंडित करती है।