कांगड़ा। हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में दवाई की जगह किसी जहरीले पदार्थ का सेवन करने के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। जिसके चलते ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति से बचने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं और उसमें लोगों को जहरीले पदार्थों के संपर्क से बचने के लिए भी उन्हें सिखाया जता है।
दवाई की जगह खाया जहरीला पदार्थ
बावजूद इसके ऐसे मामले कम होते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं। ताज़ा मामला प्रदेश के जिला कांगड़ा से सामने आया है। जहां ज्वालामुखी थाना के तहत आते एक 50 वर्षीय शख्स ने गलती से जहरीले पदार्थ का सेवन कर लिया। जिसके बाद उसकी मौत हो गई।
परिजन रात को ले गए अस्पताल
जानकारी के अनुसार, उक्त व्यक्ति तपेदिक यानी टीबी की बीमारी से पीड़ित था जो नियमित रूप से इस बीमारी से स्वस्थ होने के लिए उसकी दवाई ले रहा था।
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मगर बीते कल रात के समय उस शख्स ने दवाई की जगह गलती से कोई जहरीला पदार्थ कहा लिया। अचानक से बिगड़ती तबीयत देख परिजन उसे नजदीकी अस्पताल ले गए। मगर वहां उसकी हालत में सुधार होते न देख डॉक्टर ने उसे मेडिकल कॉलेज टांडा रेफर कर दिया।
टांडा अस्पताल में तोड़ा दम
मेडिकल कॉलेज टांडा में इलाज के दौरान देर रात उसकी मौत हो गई। जिसके बाद इसकी सूचना पुलिस को दी गई। सूचना मिलते ही पुलिस की एक टीम मौके पर पहुंची और शव को अपने कब्जे में ले लिया।
पुलिस ने किया मामला दर्ज
पुलिस ने परिजनों के बयान कलमबद्ध करने के बाद भारतीय सुरक्षा अधिनियम की धारा 194 के तहत मामला दर्ज कर लिया। साथ ही अपनी मौजूदगी में शव का पोस्टमार्टम करवाकर शव उसके परिजनों को सौंप दिया।
क्या होती है तपेदिक (टीबी) की बीमारी
तपेदिक, जिसे आमतौर पर टीबी कहा जाता है, एक संक्रामक रोग है जो मुख्यतः माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।
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यह बैक्टीरिया फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों को भी संक्रमित कर सकता है। टीबी के संक्रमण का मुख्य तरीका संक्रमित व्यक्ति की खांसी, छींक या बातचीत के दौरान हवा में छोड़े गए बैक्टीरिया को इनहेल करके होता है।
तपेदिक (टीबी) के मुख्य लक्षण
- लंबे समय तक खांसी रहना (3 सप्ताह या इससे अधिक)
- खांसी के साथ खून या बलगम आना
- छाती में दर्द
- बुखार और पसीना आना
- भूख की कमी और वजन घटना
- अत्यधिक थकावट और कमजोरी
टीबी का उपचार
टीबी का इलाज लंबे समय तक चलने वाली एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है। आमतौर पर टीबी के इलाज के लिए 6 से 9 महीने की दवा की अवधि आवश्यक होती है। प्रमुख दवाओं में आईसोनियाजिड, रिफाम्पिसिन, पाय्राज़िनामाइड और एथंबुटोल शामिल हैं।
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इलाज के दौरान मरीज को डॉक्टर की सलाह का पालन करते हुए दवाओं का नियमित सेवन करना चाहिए। टीबी के पूर्ण इलाज के लिए दवाओं का पूरा कोर्स पूरा करना बहुत महत्वपूर्ण है, अन्यथा बैक्टीरिया दवा के प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं।
क्या बरतें सावधानियां
स्वच्छता- संक्रमित व्यक्ति को सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनना चाहिए और खांसी या छींक के दौरान मुंह ढकना चाहिए।
हवा- उचित वेंटिलेशन वाले स्थानों पर रहना चाहिए और बंद जगहों से बचना चाहिए जहां हवा का आदान-प्रदान सीमित हो।
स्वास्थ्य जांच- नियमित स्वास्थ्य जांच और स्क्रीनिंग से टीबी की जल्दी पहचान की जा सकती है।
टीकाकरण- बीसीजी (BCG) टीकाकरण नवजात बच्चों को टीबी से बचाव में मदद करता है।
सावधानीपूर्वक पालन और समय पर उपचार से ही टीबी की बीमारी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है।