#अव्यवस्था
May 30, 2025
प्लास्टिक-कचरे में तब्दील हुआ हिमाचल का 'स्वर्ग' कसोल, सवालों के घेरे में सरकार और पर्यटक
सोशल मीडिया एक्स पर वायरल वीडियो ने खोली पोल लोगों में गुस्सा
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कुल्लू। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कसोल जो कभी मिनी इजराइल और प्राकृतिक स्वर्ग के नाम से मशहूर था, आज कचरे के ढेर में बदलता जा रहा है। पार्वती घाटी में बसे इस लोकप्रिय पर्यटन स्थल की बिगड़ती हालत को उजागर करते हुए एक वीडियो हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर वायरल हुआ है, जिसने देशभर में आक्रोश की लहर दौड़ा दी है।
वायरल वीडियो में कसोल के जंगलों में फैला कूड़ा, प्लास्टिक की थैलियों, बोतलों और गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे के ढेर साथ साफ दिख रहे हैं। कभी अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और शांत वादियों के लिए जाना जाने वाला यह कसोल आज कचरे के चलते अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। कचरे के अंबार ने पर्यावरण प्रेमियों और स्थानीय लोगों को चिंतित कर दिया है। वहीं सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो ने देशभर में आक्रोश की लहर दौड़ा दी है।
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वीडियो में एक व्यक्ति क्षेत्र की बदहाली पर दुख जताते हुए कहता है। बहुत गंदी बदबू आ रही है। पहले कैसा था और अब देखो कैसा है। कूड़े के ढेर पर जानवरों को मुंह मारते हुए देखा जा सकता है। इस दृश्य को देख कई सोशल मीडिया यूजर्स ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। किसी ने स्थानीय प्रशासन को आड़े हाथों लिया, तो किसी ने पर्यटकों की लापरवाही को कसोल की दुर्दशा का कारण बताया।
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Just because you have a degree, doesn't mean you're educated.
— Indian Tech & Infra (@IndianTechGuide) May 30, 2025
📍Kasol, Himachal Pradesh. 💔 pic.twitter.com/LtINTGrqLo
यह वीडियो केवल एक पर्यावरणीय चेतावनी नहीं, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता और नागरिक जिम्मेदारी की कमी को भी उजागर करता है। स्थानीय लोग और पर्यावरण प्रेमी कहते हैं कि ग्रीन टैक्स लेने के बावजूद सरकार सफाई और कचरा प्रबंधन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। हालांकि, हिमाचल प्रदेश सरकार ने हाल ही में एक पहल करते हुए राज्यभर में पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए पर्यटकों की गाड़ियों में डस्टबिन लगाना अनिवार्य करने की योजना शुरू की है। यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन मौजूदा हालात देखकर यह भी स्पष्ट है कि अकेले यह उपाय पर्याप्त नहीं होगा।
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पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि समय रहते जरूरी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले मानसून में यही कचरा नदियों में बहकर जल प्रदूषण और संकट को जन्म देगा। कसोल जैसे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र वाले क्षेत्र को बचाने के लिए व्यापक जागरूकता, सख्त नियमों और उनके कठोर पालन की आवश्यकता है।