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January 24, 2025
हिमाचल: पिता करते हैं मजदूरी, बेटी ने घर-घर जाकर किया काम, अब कला ने लूटी वाहवाही
वनिता ने मधुबनी पेंटिंग, लिप्पन कला और मंडला आर्ट में महारत हासिल की है
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शिमला। ये लाइनें तो आप सभी ने सुनी ही होंगी कि हौसलों से उड़ान होती है, आसमान क्या चीज है। जो खड़े रहें तूफ़ानों में, वो जहान क्या चीज है। हर मोड़ पर जो गिर के संभल जाए, उसकी रोशनी से अंधेरा भी जल जाए। इन शब्दों को बखूबी चरितार्थ कर दिखाया है हिमाचल की राजधानी शिमला में रहने वाली 24 वर्षीय वनिता ने।
वनिता शिमला के लोअर पंथाघाटी मेंरहती हैं। वनिता की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है-जो मुश्किलों के बावजूद अपने सपनों को साकार करना चाहता है।
आपको बता दें कि वनिता मूल रूप से झारखंड के गुमला जिले के छोटे से गांव चुहरू से ताल्लुक रखती हैं। वनिता के माता-पिता काम की तलाश में शिमला आए। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्मी वनिता ने अपनी कला के प्रति जुनून को कभी कम नहीं होने दिया।
वनिता को बचपन से चित्रकारी का शौक था। मगर गरीबी के चलते महंगे रंग और अन्य सामग्री खरीद पाना संभव नहीं था। उन्होंने शिमला के ब्यूलिया स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई की, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। इसके बाद वह घरेलू सहायिका के रूप में काम करने लगीं।
कोरोना काल के दौरान, वनिता ने लोअर पंथाघाटी के कारोबारी पंकज मल्होत्रा के घर में घरेलू सहायिका के रूप में काम करना शुरू किया। यही वह मोड़ था जहां उनकी प्रतिभा को पहचाना गया। मल्होत्रा परिवार ने ना केवल वनिता की कला को सराहा बल्कि उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित भी किया। अब वनिता शाम के समय मल्होत्रा परिवार के घर के बाहर अपनी कलाकृतियां सजाती है- जहां से गुजरने वाले कई लोग उससे खरीददारी भी करते हैं।
वनिता ने बिहार की मधुबनी पेंटिंग, गुजरात और राजस्थान की लिप्पन कला और तिब्बत की मंडला आर्ट में महारत हासिल की है। आज वह ना केवल इन कलाओं को बेचकर महीने में 7-8 हजार रुपये कमा रही हैं, बल्कि युवाओं को प्रशिक्षण भी दे रही हैं। उनकी लिप्पन कला 850 से 1900 रुपये तक बिकती है, जबकि मंडला आर्ट की कीमत 350 से 1900 रुपये तक है।
वनिता की कलाकृतियां केवल स्थानीय बाजार तक सीमित नहीं हैं। वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, खासकर इंस्टाग्राम, के माध्यम से भी ऑर्डर प्राप्त करती हैं। उनकी योजना भविष्य में ई-कॉमर्स के जरिये देश-विदेश में अपनी कला को पहुंचाने की है।
वनिता का सपना है कि वह शिमला में अपनी कलाकृतियों की एक प्रदर्शनी लगाए। वनिता का कहना है कि एक मजदूर का परिवार केवल दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करता है, लेकिन उसकी मेहनत और जुनून से यह साबित कर दिया कि कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है। उसकी कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है जो परिस्थितियों को अपने सपनों की राह में बाधा मानते हैं।
वनिता अब अपने कला के माध्यम से न केवल अपनी पहचान बना रही हैं बल्कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बन रही हैं। उनका उद्देश्य शिमला में कला को एक नई पहचान देना और अन्य युवाओं को प्रेरित करना है। उनकी मेहनत और लगन दिखाती है कि सपने चाहे कितने भी बड़े हों, उन्हें हासिल किया जा सकता है।