कांगड़ा। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा स्थित गुलेर अपनी चित्रकला को लेकर हमेशा से ही सुर्खियों में रहता है। एक बार फिर गुलेर लघु चित्रकला, विशेष रूप से नैनसुख की चित्रकला को हाल ही में मुंबई में मान्यता मिली है। नैनसुख की बनाई पेंटिंग महाराजा बलवंत सिंह की गीत-संगीत महफिल- हाल ही में मुंबई के प्रमुख कला नीलामघर पंडोल में 15 करोड़ रुपये में बिकी। उनकी अगली पीढ़ी द्वारा बनाई गई 'गीत गोविंद' पर आधारित पेंटिंग ने भी 16 करोड़ रुपये में बिककर एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया।
अब तक की सबसे महंगी पेंटिंग्स में से एक
बता दें कि यह पेंटिंग 15 करोड़ रुपये में बिकने वाली सबसे महंगी पेंटिंग्स में से एक मानी जा रही है। इससे पहले, भगवान श्रीकृष्ण की 'कालिया नाग पर नृत्य' वाली पेंटिंग 6 करोड़ रुपये में बिकी थी। इसके अलावा, वाशिंगटन में स्थापित देवी की बसोहली शैली में बनी पेंटिंग 1 करोड़ रुपये में नीलाम हुई थी, वहीं लंदन में पहाड़ी शैली की पेंटिंग 74 लाख रुपये में बिकी थी।
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18वीं सदी से जुड़ा है इतिहास
बताते चलें कि गुलेर लघु चित्रकला का इतिहास 18वीं सदी से जुड़ा है, जब राजा गोवर्धन चंद के शासनकाल में इसे प्रोत्साहन मिला था। गुलेर और कांगड़ा की चित्रकला के योगदान को पूरे देश और विदेश में पहचान मिली है। लंदन के विक्टोरिया एंड अल्बर्ट संग्रहालय, स्विट्जरलैंड के रीटबर्ग संग्रहालय, चंडीगढ़ के राष्ट्रीय कला संग्रहालय और लाहौर में गुलेर और कांगड़ा लघु चित्रकला की पेंटिंग्स शोभा बढ़ा रही हैं।
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कौन थे नैनसुख
जानकारी के लिए बता दें कि नैनसुख जम्मू के रहने वाले थे और अपने पिता पंडित सेऊ के साथ गुलेर आए थे। नैनसुख और उनके भाई मनकू दोनों ही चित्रकार थे और कांगड़ा तथा गुलेर के महाराजाओं के लिए चित्रकला में कई महत्वपूर्ण योगदान किए।
गुलेर और कांगड़ा लघु चित्रकला में क्या है अंतर
गुलेर और कांगड़ा लघु चित्रकला में कुछ अंतर होता है—गुलेर चित्रकला में प्राकृतिक चित्रण ज्यादा होता है और चेहरों को गोलाकार बनाया जाता है, जबकि कांगड़ा चित्रकला में चेहरों को लंबा किया जाता है। इन चित्रकला शैलियों में पेंटिंग बनाने में बहुत धैर्य और संयम की आवश्यकता होती है और एक पेंटिंग को तैयार करने में कई महीने लग सकते हैं।
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कांगड़ा व गुलेर चित्रकला में समानताएं
कांगड़ा और गुलेर लघु चित्रकला में अधिक अंतर नहीं है, लेकिन गुलेर शैली में प्राकृतिक चित्रण और गोलाकार चेहरे प्रमुख होते हैं। जबकि कांगड़ा चित्रकला में चेहरे लंबे होते हैं। इन चित्रकला शैलियों में चित्रकारों के अनुसार, पेंटिंग बनाने में अत्यधिक धैर्य और संयम की जरूरत होती है और प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जो पत्थरों और वनस्पतियों से तैयार किए जाते हैं।