चंबा। बरसात का मौसम में जहां बारिश की बूंदें ठंडक और आस-पास हरियाली कर देती हैं, वहीं अनचाहे कीड़ों और मच्छरों की समस्या भी साथ लेकर आती है। कुछ खतरनाक कीड़े इन दिनों आपके घर में दस्तक दे जाते हैं, तो वहीं कुछ खेतों और बागीचों में इन कीड़ों की भरमार इस सीजन में बढ़ जाती है। ये कीड़े आपके शरीर में एलर्जी कर देते है और कभी-कभी तो इतने भयानक होते हैं कि आपकी जान तक ले लेते हैं।
मां-बेटे को स्क्रब टायफस वाले कीड़े ने काटा
ऐसा ही एक मामला हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले से सामने आया है। यहां सलूणी क्षेत्र की स्नूह पंचायत में घास काटते समय स्क्रब टायफस वाले कीड़े के काटने से मां और बेटे की मौत हो गई है। दोनों की मौत दो दिन के अंतराल में हुई है। मां-बेटे की मौत के बाद से पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ रही है।
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क्या है पूरा मामला?
- खेत में चारा लेने गए मां-बेटा
- स्क्रब टायफस वाले कीड़े ने काटा
- हफ्ते बाद पीला पड़ने लगा शरीर और हुआ तेज बुखार
- अस्पताल पहुंचने से पहले रास्ते में मां की थम गई सांसें
- पति ने दी पत्नी को मुखाग्नि
- अस्पताल में बेटे ने तोड़ा दम
- बहन ने किया भाई का अंतिम संस्कार
- पिता ने क्यों नहीं दी बेटे को मुखाग्नि?
जानकारी के अनुसार, दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया है। महिला को मुखाग्नि उसके पति ने दी है। जबकि, युवक को मुखाग्नि उसकी बहन ने दी है। क्षेत्र में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी बहन ने अपने भाई को मुखाग्नि दी है और अंतिम संस्कार की सभी रस्में निभाई हैं।
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क्या कर रहे थे मां-बेटा?
बताया जा रहा है कि स्नूह गांव के रहने वाले सुभाष की पत्नी अपने बेटे आशीष के साथ खेतों से पशुओं के लिए चारा लेने गई थी। खेत में घास काटते समय रेखा को किसी कीड़े ने काट लिया। मगर रेखा को उस समय इस बात का एहसास नहीं हुआ।
कैसे बिगड़ी दोनों की तबीयत?
इसके बाद आशीष उस कटे हुए घास को अपने सिर पर उठाकर घर ले आया। करीब एक हफ्ते बाद रेखा और आशीष के शरीर पीला पड़ने लगा और दोनों को बार-बार बुखार आने लगा। इसी के चलते दोनों का स्थानीय अस्पतालों में उपचार करवाया गया। मगर दोनों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।
इस कारण दोनों को मेडिकल कॉलेज चंबा ले जाया गया। जहां मौजूद डॉक्टरों ने प्राथमिक उपचार देने के बाद दोनों को अस्पताल में भर्ती कर लिया। अस्पताल में दोनों की स्क्रब टायफस की रिपोर्ट पॉजीटिव पाई गई। वहीं, यहां रेखा की तबीयत ज्यादा बिगड़ती देख डॉक्टरों ने उसे मेडिकल कॉलेज टांडा रेफर कर दिया।
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कब हुई मां की मौत?
रक्षा बंधन के दिन रेखा ने बीमार हालत में अपने दो भाइयों को राखी बांधी। इसके बाद जब परिजनों द्वारा उसे टांडा मेडिकल कॉलेज ले जाया जा रहा था तो रास्ते में रेखा ने दम तोड़ दिया। जबकि, आशीष चंबा अस्पताल में ही उपचाराधीन था।
वहीं, परिजन रेखा के शव को पैतृक गांव स्नूह लेकर पहुंचे। इसी बीच आशीष को भी अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। मगर जब आशीष ने घर पर मां को मृत देखा तो उसकी तबीयत दोबारा बिगड़ गई। इसके बाद आशीष के चाचा और परिजन आशीष को फिर से मेडिकल कॉलेज चंबा ले गए। यहां डॉक्टरों ने उसे प्राथमिक उपचार देने के बाद टांडा मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया।
पति ने किया पत्नी का अंतिम संस्कार
उधर, घर पर सुभाष ने रेखा को मुखाग्नि देकर उसका दाह-संस्कार किया। यह मंजर देखकर हर किसी की आंख नम थी कि एक तरफ सुभाष अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार कर रहा था। दूसरी तरफ उसका बेटा अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रहा था।
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बहन ने दी भाई को मुखाग्नि
रेखा का दाह-संस्कार करने के कुछ घंटों बाद ही सुभाष को आशीष की मौत की सूचना मिली। टांडा अस्पताल पहुंचने के कुछ समय बाद ही आशीष ने दम तोड़ दिया था। कुछ ही पलों में सुभाष का पूरा परिवार उजड़ गया। आशीष बनीखेत पॉलीटेक्नीक कॉलेज में इलेक्ट्रिकल ट्रेड में शिक्षा ग्रहण कर रहा था।
पिता ने क्यों नहीं किया बेटे का किरया-कर्म?
सुभाष की बेटी नावेदी ने अपने भाई आशीष को मुखाग्नि दी। दरअसल, हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार, बाप अपने बेटे को मुखाग्नि और किरया-कर्म नहीं कर सकता। ऐसे में नावेदी ने अपने भाई का किरया-कर्म करने का निर्णय लिया।
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क्या हैं कीड़े के काटने के लक्षण?
- इस कीड़े के काटने से घाव नहीं होता है।
- कीड़े के काटने के तीन-चार दिन के बाद इसके लक्षण पता चलते हैं।
- मेडिकल तौर पर परीक्षण के बाद ही लक्षण पता लगते हैं।
- हालांकि, तब तक इसका जहर पूरे शरीर में फैल चुका होता है।
क्या है लोगों की मांग?
आपको बता दें कि इससे पहले भांदल पंचायत के रंजनी में भी एक व्यक्ति के बेटे-बेटी को खेतों में घास काटते समय इस तरह के किसी कीड़े ने काटा था। जिससे बेटे की मौत हो गई थी। लोगों ने स्वास्थ्य विभाग और सरकार से मांग की है कि जल्द से जल्द इस कीड़े का पता लगाया जाए। साथ ही लोगों को इस जहरीले कीड़े के बचाव के लिए प्रचार-प्रसार किया जाए।
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क्या उठ रहे सवाल?
- क्या होता है स्क्रब टायफस?
- क्या हैं स्क्रब टायफस के लक्षण?
- कैसे फैलती है बीमारी?
- कैसे करें इससे बचाव?
- कैसे करें स्क्रब टाइफस की जांच?
कैसे करें स्क्रब टाइफस की जांच?
स्क्रब टाइफस की जांच के लिए एंजाइम लिंक्ड इम्यूनोसोरबेंट यानी एलीजा टेस्ट किया जाता है। यह टेस्ट IGG और IGM की जानकारी अलग से देता है। इसमें मरीज का ब्लड सैंपल लेकर एंटीबॉडीज का पता किया जाता है। स्क्रब टाइफस की जांच की एक किट की कीमत करीब 18 हजार से 20 हजार रुपए तक होती है। एक किट के जरिए 70 से 75 टेस्ट किए जाते हैं।
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क्या है स्क्रब टाइफस के लक्षण?
इस बीमारी के लक्षण पिस्सु के काटने के दस दिन बाद दिखने शुरू होते हैं। स्क्रब टाइफस से संक्रमित व्यक्ति को
- बुखार के साथ कंपकंपी ठंड
- सिर, बदन और मांसपेशियों में तेज दर्द
- हाथ, पैर, गर्दन और कूल्हे के नीचे गिल्टियां
- शरीर में दाने-दाने
- सोचने-समझने की क्षमता कम
ऐसे में अगर इसका समय पर इलाज ना करवाया जाए तो भ्रम से लेकर कोमा तक की समस्या महसूस होने लगती है। कभी-कभी कुछ लोगों के ऑर्गन फेल होने के साथ-साथ इंटरनल ब्लीडिंग होने लग जाती है।
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कैसे फैलती है बीमारी?
आमतौर पर तेज बुखार के साथ होने वाली यह संक्रामक बीमारी झाड़ियों (स्क्रब) में पाए जाने वाले माइट (चींचड़ा) के काटने से फैलती है। इसलिए इस बीमारी का नाम स्क्रब टाइफस पड़ा है। यह बीमारी बैक्टीरिया से संक्रमित पिस्सु के काटने पर फैलती है। इसके बाद यह स्क्रब टाइफस बुखार बन जाता है।
शुरुआत में इस बीमारी का सिर्फ किसान-बागवान की शिकार हुए हैं। मगर अब यह बीमारी फैल रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि खेतों और झाड़ियों में रहने वाले चूहों पर चिगर्स कीट पाया जाता है। अगल इन संक्रमित चिगर्स या चूहों का पिस्सू काट ले तो ओरेंशिया सुसुगेमोसी बैक्टीरिया व्यक्ति के खून में प्रवेश कर व्यक्ति को संक्रमित कर देता है।
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क्या है स्क्रब टाइफस से इलाज?
आमतौर पर डॉक्टर्स बीमारी की गंभीरता को कम करने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं देते हैं। मगर फिलहाल स्क्रब टाइफस से बचाव के लिए अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बनाई गई है। स्क्रब टाइफस से बचाव ही सबसे अच्छा इलाज है।
कैसे करें स्क्रब टाइफस से बचाव?
स्क्रब टाइफस से बचने के लिए-
- चूहा, गिलहरी और खरगोश से रहें दूर
- नंगे पैर घास पर ना चलें
- शरीर को पूरी तरह ढकने वाले पहने कपड़े
- घर के आसपास झाड़ियों/घनी घास को रखें साफ
- साफ-सफाई का रखें खास ख्याल
- कीटनाशक दवाओं का करें छिड़काव