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June 10, 2025

आजादी के बाद पहली बार आज खुलेगा हिमाचल का ये दर्रा, चाइना बॉर्डर का कर सकेंगे दीदार

सीएम सुक्खू करेंगे उद्घाटन, चीन बॉर्डर तक देख पाएंगे

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shipkila pass

रिकांगपिओ। 10 जून यानी आज हिमाचल प्रदेश के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। आज़ादी के 78 साल बाद देश का सामरिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील शिपकिला दर्रा अब आम भारतीय पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। CM सुखविंदर सिंह सुक्खू आज किन्नौर के खाब में पर्यटकों का औपचारिक स्वागत कर देश को एक नया बॉर्डर टूरिस्ट डेस्टिनेशन सौंपेंगे।

अब चीन बॉर्डर का कर सकेंगे दीदार

अब पर्यटक खाब से आगे शिपकिला दर्रे तक अपनी गाड़ी या टैक्सी से सफर कर सकेंगे, और भारत-चीन सीमा पर स्थित शिपकी गांव को अपनी आंखों से देख सकेंगे  जो 1962 से पहले भारत का हिस्सा हुआ करता था। इस दर्रे से चीन द्वारा निर्मित बॉर्डर रोड, सतलुज और स्पीति नदी का संगम, और आसपास की बर्फीली चोटियां भी दिखाई देंगी।

 

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केवल आधार कार्ड पर मिलेगी एंट्री

हालांकि, सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यह दर्रा सिर्फ भारतीय नागरिकों के लिए खोला गया है। विदेशी नागरिकों को अभी यहां जाने की अनुमति नहीं है। खाब में स्थित ITBP की चेकपोस्ट पर आधार कार्ड दिखाना अनिवार्य होगा, और यहीं पर पर्यटकों की पहचान व यात्रा विवरण दर्ज किए जाएंगे।

सुबह जाएं, शाम को लौटना अनिवार्य

इस संवेदनशील क्षेत्र में रात का ठहराव पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। पर्यटकों को सुबह खाब से शिपकिला तक का सफर करना होगा और उसी दिन शाम को वापसी करनी होगी। इस क्षेत्र में आबादी नहीं है, और होटल अथवा होमस्टे की कोई व्यवस्था नहीं है।

 

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सीमित संख्या में मिल सकेगी अनुमति

प्रशासन ने फिलहाल एक दिन में अधिकतम 300 पर्यटकों को ही शिपकिला पास तक जाने की अनुमति देने का निर्णय लिया है, क्योंकि खाब से आगे का मार्ग सिंगल लेन है और वाहनों की भीड़ से सुरक्षा में दिक्कत हो सकती है।

कैसे पहुंचें शिपकिला?

देशभर के पर्यटक चंडीगढ़ या शिमला पहुंचने के बाद NH-5 के ज़रिए किन्नौर और फिर खाब तक आ सकते हैं। खाब से शिपकिला तक जाने के लिए लिंक रोड पर टैक्सी या निजी वाहन से यात्रा की जा सकती है। काजा, रिकांगपिओ, पूह या नामज्ञा जैसे कस्बों में ठहरने की व्यवस्था मौजूद है।

शिपकिला दर्रा: ऐतिहासिक और सामरिक महत्व

  • शिपकिला दर्रा भारत-तिब्बत व्यापार का प्राचीन मार्ग रहा है।

  • इसे हिमालय का सिल्क रूट कहा जाता था।

  • 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद इसे आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया था।

  • 1993 में सीमित व्यापार के लिए इसे फिर से खोला गया, लेकिन तब भी आम नागरिकों की आवाजाही प्रतिबंधित थी।

  • 2020 में कोविड के कारण सीमित व्यापारिक गतिविधियां भी रोक दी गई थीं।

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पर्यटन के साथ बॉर्डर जीवन को मिलेगा बल

स्थानीय विधायक जगत सिंह नेगी का मानना है कि इस दर्रे के खुलने से किन्नौर की सीमांत पंचायतों में पलायन रुकेगा और बॉर्डर पर्यटन को गति मिलेगी। इससे सेना की मौजूदगी के साथ-साथ नागरिक जीवन में भी सुरक्षा, विकास और रोजगार के नए अवसर खुलेंगे।

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