चंबा। हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड ने आज 12वीं कक्षा का वार्षिक परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया है। हर बार की तरह ही इस बार भी परीक्षा परिणाम में छात्राओं का बोलबाला रहा है। हालांकि कुछ छात्रों ने भी अपनी मेहनत से टॉपरों की सूची में जगह बनाई है। ऐसे ही एक छात्र हैं हिमाचल के चंबा जिला के चिंतन शर्मा। चिंतन शर्मा ने कला संकाय की मेरिट सूची में चौथा स्थान हासिल किया है। चिंतन के पिता दर्जी का काम करते हैं।
दो घंटे पैदल चढ़ाई चढ़ पहुंचता था स्कूल
चिंतन शर्मा की सफलता इसलिए भी अधिक मायने रखती है, क्योंकि उसने यह मुकाम कड़ी मेहनत के अलावा विपरित परिस्थितियों में हासिल किया है। चिंतन को स्कूल तक पहुंचने के लिए रोजाना दो घंटे की चढ़ाई चढ़कर स्कूल पहुंचना पड़ता था। लेकिन फिर भी चिंतन ने हिम्मत नहीं हारी और विपरित परिस्थितियों में भी कड़ी मेहनत कर आज चौथा स्थान हासिल किया।
पिता करते हैं दर्जी का काम
चिंतन शर्मा ने जिला चंबा के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला शिल्लाघ्राट से जमा दो की परीक्षा उतीर्ण की है। उसने अपनी मेहनत से कला संकाय की मेरिट सूची में चौथा स्थान हासिल किया। चिंतन शर्मा के पिता रत्तो राम दर्जी का काम करते हैं। इसी पेशे से वह अपने परिवार के पालन पोषण के साथ ही चिंतन की पढ़ाई का खर्च भी उठा रहे हैं।
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सुबह साढ़े सात बजे जाता था स्कूल
चिंतन शर्मा ने बताया कि उसे स्कूल पहुंचने के लिए रोजाना दो घंटे की चढ़ाई चढ़कर जाना होता था। समय पर स्कूल पहुंच सके, इसके लिए वह सुबह साढ़े सात बजे ही घर से निकल जाता था। शाम को वापस घर पहुंचते पहुंचते उसे छह बज जाते थे। सर्दियों के मौसम में घर पहुंचते ही उसे अंधेरा हो जाता था।
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माता-पिता बेटे की कामयाबी से खुश
वहीं दूसरी तरफ चिंतन की इस कामयाबी पर उसके स्कूल और परिजनों में खुशी का माहौल है। पिता रत्तो राम ने बताया कि चिंतन की इस उपलब्धि पर वह बेहद खुश हैं। उन्हें अपने बेटे पर गर्व है। माता महेशो खुशी से फूले ही नहीं समा रही हैं। बेटे की कामयाबी पर रिश्तेदार बधाई देने के लिए पहुंच रहे हैं।
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अध्यापक बनना चाहता है चिंतन
पिता ने बताया कि चिंतन ने जमा दो की पढ़ाई के लिए काफी सफर पैदल तय किया है। चिंतन ग्राम पंचायत चंबी के गांव अबोहर के रहने वाले हैं। कला संकाय की मेरिट में चौथा स्थान हासिल करने वाले सिल्लाघ्राट के छात्र चिंतन शर्मा ने कहा कि वे अध्यापक बनना चाहते हैं।
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उन्होंने अपनी कामयाबी का श्रेय अपने अध्यापकों, माता पिता और बुजुर्गों को दिया है। वे अध्यापक बनकर शिक्षा स्तर को मजबूत करना चाहते हैं।