शिमला। हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की चार और विधानसभा उपचुनाव की छह सीटों पर चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। सबसे हॉट सीट मानी जा रही मंडी सीट पर भाजपा ने कंगना रनौत को अपना प्रत्याशी बनाया है। कंगना के खिलाफ लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार कांग्रेस ने भी अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। कांग्रेस ने राजपरिवार का गढ़ रही मंडी सीट पर अपने सबसे प्रबल और युवा नेता विक्रमादित्य सिंह को टिकट दिया है।
हार हो या जीत, नुकसान विक्रमादित्य सिंह का
मगरए अब यह बात सामने आ रही है कि, यह राह विक्रमादित्य सिंह के लिए कांटों का ताज बनने वाली है। माना जा रहा है कि, यदि विक्रमादित्य सिंह इस चुनाव को जीत भी जाते हैं तो उन्हें हिमाचल छोड़कर दिल्ली जाना पड़ेगा। इससे हिमाचल राजनीती में उनका वर्चस्व समाप्त हो जाएगा। क्योंकि स्टेट पॉलिटिक्स से विक्रमादित्य सिंह को दूर होना पड़ेगा।
विक्रमादित्य या जाएंगे दिल्ली, या सुक्खू के आगे होंगे कमजोर
अब वहीं दूसरी ओर ध्यान दिया जाए तो यदि वह चुनाव हार जाते हैं तो यह हार उनके सियासी करियर और लोकप्रियता पर भी प्रश्न चिन्ह लगा देगी। हालांकि हार के बाद विक्रमादित्य विधायक व मंत्री तो बनें रहेंगे, मगर उनकी यह हार राजपरिवार की साख को धूमिल कर देगी। जिससे वह सुक्खू गुट के आगे भी कमजोर साबित होंगे।
राजपरिवार का गढ़ रही है मंडी सीट
इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो मंडी संसदीय सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। आजतक हुए चुनावों में कांग्रेस ने 15 बार जीत हासिल की है, जबकि भाजपा को मात्र चार बार ही यहां से जीत नसीब हुई है।
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वहीं स्वर्गीय वीरभद्र सिंह परिवार की बात की जाए तो यहां से कुल 3 बार वीरभद्र सिंह, और तीन बार उनकी धर्मपत्नी प्रतिभा सिंह सांसद बन चुकी है।
कांग्रेस की ओर से यूथ आइकॉन माने जाने वाले वीरभद्र-प्रतिभा के बेटे विक्रमादित्य सिंह को कंगना के खिलाफ मजबूत नेता मानते हुए प्रत्याशी घोषित किया है।