शिमला। हिमाचल प्रदेश की हालत इस समय “आमदनी अठनी और खर्चा रूपईया” जैसी हो गई है। प्रदेश को मिलने वाले राजस्व में हर साल कमी हो रही है और खर्चे बढ़ रहे हैं। आर्थिक संकट से जूझ रहे प्रदेश के लिए वित्तायोग से मिलने वाली धनराशि (अनुदान) ऑक्सीजन का काम करती है। लेकिन यह ऑक्सीजन हर साल कम हो रही है।
कम होता अनुदान बढ़ाएगा हिमाचल का संकट
15वें वित्तायोग की अवधी भी 2026 में समाप्त होने वाली है। तब तक राजस्व घाटा अनुदान की धनराशि सिकुड़कर तीन हजार करोड़ रह जाएगी। ऐसे में इस राशि से प्रदेश का विकास कैसे होगा, यह चिंता का विषय है। माना जा रहा है कि मौजूदा वित्त वर्ष से लेकर अगले तीन साल प्रदेश सरकार के लिए आर्थिक संकट से भरे रहने वाले हैं।
कम होते अनुदान से बढ़ रही कर्ज की राशि
इसी माह से शुरू हुए वित्त वर्ष के पहले माह में हिमाचल के खजाने में 521 करोड़ की धनराशि आई है। जबकि बीते वर्ष वित विभाग को मासिक 671 करोड़ रुपए मिलते थे। लगातार कम हो रहे अनुदान के चलते ही प्रदेश सरकार को हर माह कर्ज लेना पड़ रहा है। लेकिन आने वाले समय में कर्ज से भी प्रदेश की गाड़ी को धकेलना मुश्किल हो जाएगा।
प्रदेश सरकार को लोन भी नहीं दे पाएगा सहारा
लोन के सहारे चल रही प्रदेश सरकार के लिए आने वाले समय में यह लोन भी पूरी तरह से सहारा नहीं दे पाएगा। हालांकि कोरोना काल के दौरान प्रदेश सरकार को केंद्र से करीब पंद्रह हजार करोड़ की धनराशि प्राप्त हुई थी, जिससे प्रदेश की स्थिति काफी अच्छी थी।
फॉर्मूला के अनुसार घट रही अनुदान की राशि
बता दें कि कर्मचारियों के वेतन का खर्च राजस्व घाटा अनुदान से निकलता था। उसके बाद अनुदान में मिलने वाली धनराशि फॉर्मूले के अनुसार घटती जा रही है और इस माह से सवा पांच सौ करोड़ ही मिले हैं।
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जबकि सरकार को इस माह से कर्मचारियों के वेतन और पेंशनरों की पेंशन के लिए मासिक पच्चीस हजार करोड़ खर्च करने पड़े हैं। सरकार के खर्चें लगातार बढ़ते जा रहे हैं और आय के साधन घटते जा रहे हैं।